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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १६९ वायरो ए जघन्य एक भव करे, उत्कृष्टा बार हजार आठसेंचोवीस भव एक अंतर मुहूर्तमां करे. अने वनस्पतिना बे भेद ते प्रत्येक अने साधारण. हवे प्रत्येक जघन्य एकभव उत्कृष्टा बत्रीसहजार भव करे अने साधारण जघन्य एकभव अने उत्कृष्टा पांसठ हजार पांचसे छत्रीस भव करे. बेइंद्रिय जघन्य एक भव अने उत्कृष्टा ऐंसी भव करे. तेइंद्रिय जघन्य एकभव अने उत्कृष्टा साठभव करे.चौरेंद्रिय जघन्य एक भव अने उत्कृष्टा चालीसभव करे, असंज्ञी तियेच जघन्य एकभव अने उत्कृष्टा चोवीस भव करे. संज्ञी तिर्यच अने संज्ञी मनुष्य जघन्य अने उत्कृष्टो एकज भव करे इति श्री छकायना भवनो थोकडो संपूर्ण.
॥ अथ श्री छ लेश्यानो थोकडो. ॥
श्री उत्तराध्ययन सूत्र, अध्यन चोत्रीसमे छ लेश्यानो थोकडो चाल्यो छे तेमां प्रथम लेश्याना अगीयार द्वार कहे छे:-नाम, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, परीणाम, लक्षण, स्थानक, स्थिति, गति अने चवन, ए अगीयार नाम कह्यां, हवे तेनो विस्तार कहे छे..
प्रथम नामद्वार कहे छे-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापुत लेश्या, तेजु लेश्या, पद्म लेश्या, अने शुक्ल लेश्या..
बीजो वर्णनो द्वार कहे छे-कृष्ण लेश्यानो वर्ण जेवो पाणी सहित मेघ काळो, जेवां पाडानां शीगडां काळां, जेवां अरीठानां बीज, जेवु गाडातुं खंजन, आंखनी कीकी ए करतां अनन्त गुणो काळो. १. नील लेश्यानो वर्ण-जेवो अशोक वृक्ष नीलो, जेवीचासपक्षीनी