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________________ ५८ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां सम्यग्दर्शन अने सम्यग्चारित्र ए त्रण प्रकारे मोक्षमार्ग. तेमज दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप अने उपकारिता ए पांच अथवा साधुक्रिया अने गृहस्थक्रिया रूप बे प्रकारनो मोक्षविनय सर्व जिनेश्वरोए भाव सहित सेवन करवा सरखी रीते फरमावेल छे. १६५-१६७, पूर्वप्रवृत्ति, शेषश्रुतप्रवृत्ति, अने पूर्वविच्छेदकाल ऋषभदेवथी कुन्थुजिन पर्यन्त असंख्याता, अने अरनाथथी पार्श्वनाथ पर्यन्त संख्याता काल लगण तथा वीरप्रभुना शासने हजार वर्ष लगण पूर्वप्रवृत्ति रही. तेमज पूर्वविच्छेदकाल पण एवी रीतेज समजवू. परन्तु एटलो विशेष छे के वीरशासनमां वीश हजार वर्षनो पूर्वविच्छेद काल छे. पार्श्वप्रभुने पूर्वविच्छेद काल होय अथवा न पण होय. जे जिनेश्वरनो जेटला कालपर्यन्त शासन (तीर्थ ) कायम रहे त्यां सुधी शेषश्रुतप्रवृत्तिकाल जाणवू. शेषश्रुतनो ज्यां विच्छेद थयो छे त्यां अच्छेरो ( आश्चर्य ) मानवामां आव्युं छे. १६८ जिनेश्वरोनो परस्पर अन्तर १-एक जिनेश्वरना जन्मथी बीजा जिनेश्वरनो जन्म, २-एक प्रभुना जन्मथी बीजा प्रभुनो मोक्ष,३-एक जिनेन्द्रना मोक्षथी बीजानो जन्म अने ४-एक प्रभुना मोक्षथी बीजा प्रभुनो मोक्ष. ए चार प्रकारनो अन्तर छे. परन्तु अत्रे चोथो अन्तर ( मोक्षथी मोक्ष ) जाणवू जोइए.
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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