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________________ ५६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां जिनेश्वर सम्मेतशिखरोपरि मोक्ष गया, प्रथम चरम जिन पर्यङ्कासने, अने शेष २२ जिन कायोत्सर्गासने मोक्ष गया छे. सर्व जिनवरोनी निज निज आसन प्रमाणथी त्रण भागोन अवगाहना जाणवी. आदिनाथने चौदभक्त, वीरप्रभुने षष्ठभक्त, अने शेष जिनवरोने मासक्षपणतप मोक्षगमन वखते हतो. १५७-१५८ मोक्षपरिवार अने मोक्षसमय. ऋषभजिन १० हजार, पद्मप्रभ ३०८, सुपार्श्व ५००, वासुपूज्य ६००, विमल ६ हजार, अनन्तजिन ७ हजार, धर्मजिन १०८, शान्तिजिन ९००, मल्लिजिन ५००, नेमिजिन ५३६, पार्श्वजिन ३३, अने शेष जिन हजार हजार मुनिराजोना परिवारथी तथा वीरप्रभु एकाकी मोक्ष गया छे. मोक्षगमन परिवारनी कुलसंख्या अडतीश हजार चारशो पंचाशी समजवी. ___ संभव, पद्मप्रभ, सुविधि, अने वासुपूज्य ए चार प्रभु पश्चिम प्रहरमां. ऋषभ, अजित, अभिनंदन, सुमति, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, शीतल अने श्रेयांस, ए आठ प्रभु प्रथम प्रहरमां. धर्म, अर, नमि, अने वीर, ए चार प्रभु अपररात्रि (पाछली रात्र ) मां, अने विमल, अनन्त, शांति, कुंथु, मल्लि, मुनिसुव्रत, नेमि, अने पार्थ, ए आठ प्रभु पूर्वरात्रिमा मोक्ष गया छे.
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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