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________________ ३० पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां थयेल छे. ऋषभदेवे सिद्धार्थवनमां, मुनिसुव्रते नीलगुहावनमां, वासुपूज्ये विहारगेहवनमां, धर्मनाथे वप्रगावनमां, पार्श्वनाथे आश्रमपदवनमां, वीरप्रभुए ज्ञातखंडवनमां अने शेष जिनेश्वरोए सहस्राम्रवनमा कर्मपीडानो नाश करवा माटे संयम धारण करेल छे. तेमज ऋषभदेवप्रभुए चार मुष्टि अने शेष जिनवरोए पंचमुष्टि लोंच करेल छे, लोंच कर्यां पछी फरी केशोद्गम न होवाथी लोंच करवा नो क्लेश जिनवरोने होतो नथी. ७४-७५ देवदूष्य वस्त्र अने तेनी स्थिति दीक्षासमयमां जिनेश्वरोना स्कन्ध (खभा) ऊपर लक्ष मूल्यवालुं देवदूष्यवस्त्र शक्रेन्द्र मूके छे. ते त्रेवीश तीर्थकरोना खभा ऊपर सदाकाल रहे छे तेथी तेओ सचेल कहेवाय छे, अने वीरप्रभुए कांइक अधिक एक वर्ष पछी अनुकंपा लावीने देवदृष्य वस्त्र ब्राह्मणने आपी दी, तेथी ते अचेल कहेवाया. ७६-७७ पारणाद्रव्य अने पारणा समय ऋषभदेवजीए प्रथम पारणो इक्षुरसथी अने शेष जिनवरोए परमान (खीर) थी कर्यो. ऋषभदेवजीए बारमासे अने शेष प्रभुए बीजा दिवसेज पारणो कर्यो. सर्व जिनवर परीपहशूर, अचल, अमल, सहनशील अने क्षमाशूर होय छे.
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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