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________________ १७२ श्रीमहावीर-गौतम प्रवचन. [शुभाशुभकर्म १०० कैक जीवो तो जममिया, कमाई माठी कीध । दिये दंड घर घर भमे, दुःख झाझे लीध ॥२१८॥ गले हांडली बांधतो, शा करमे छे बंध। स्वमे सुख ना पामतो, एवो शाथी अंध ॥२१९॥ कराविया सिसरा वली, संचित एवां थाय । एथी दुःख बहु पामतो, मले न सुखनी साय ।२२० १०१ को स्वामी! स्त्री जात तो, वंध्या शाथी थाय । मेणुं दे छे मानवी, कया कर्म फल दाय ॥२२१॥ फल केरी अंतराई करी, प्राणी जन परमाण । एज प्रतापे आ भवे, वंध्या मनथी मान ॥२२२॥ १०२ मृतक वांझणी स्त्री थशे, ए शा करमे एम । पुत्रतणुं सुख ना लहे, कहो थाय एकेम ॥२२३॥ ऊगता अंकूर चूंटिया, वनस्पतिना जाण । एथी जीव जन्म्यो नहीं, नांखी पापनी खाण ।२२४॥ १०३ को स्वामी! शा कर्मथी, पुरुष वांझीयो होय । कया पाप लाग्या हशे, कष्ट सहे छे कोय ॥२२५।। घणां बीजना मींजतो, शेकी तलीज सार । ए परतापे आ भवे, एवो छ अवतार ॥ २२६ ।। १०४ पुरुष एकने स्त्री घणी, सर्वे वंध्या होय । कया करम कीधा हशे, संकट एवं सोय ॥२२७॥ पूर्वभवे कीधा धणा, हलाल खोरी कर्म । सारं थाये शा थकी, विना एक तो धर्म ॥२२८॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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