SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फलोनो दृश्य ] महावीर-गौतम-प्रवचन. ६५ दालीदरपणुं पामियो, जीव शाथी जिनराय । आलस दिल अपार छे, शा करमे फलदाय ॥१४१॥ दान पुण्य सुपात्रने, नहिं दीधां नादान । दया न पाली दीलमां, करणीना फल जान ॥१४२॥ ६६ मात तात ने भ्रातनो, वली थाय विजोग । स्त्री भगनी ने पुत्रनो, शाथी नहिं संजोग ॥१४३॥ कुगुरु ने कुदेवता, मानी हिंसा होय । सरधे नहीं जो सत्यने, ए फल आखर सोय ॥१४४॥ ६७ को स्वामी! पामी धरम, वामे कोई सुजाण । कारण एनुं तो कहो, प्रिय करूं हुं परमाण ॥१४५॥ सित्तेर कोडाकोडी वली, सागर थिति छे जाग । दुकृत मोहिनी कर्मनी, खपवे चोथो भाग ॥१४६॥ करम मोहिनी जोडीयु, पूर्वभवेज अथाग । त्रण हिस्सा बाकी रहे, धर्म वामवा लाग?॥१४॥ ६८ बोले समकित साथ तो, आराधक सह बंध । बांध्यां पछी शंका पड़े, एवो शाथी अंध ॥१४८॥ कुवा निवाण खणाविया, जीव कर्या दुःखी अपार । एज प्रतापे पामियो, विराधक पणुं ए सार ॥१४९।। ६९ को स्वामी ! आ प्रश्न छे, खाय पीए जन कोय। जन बीजो दुस्ख आपतो, एशा करमे होय ॥१५०॥ दुखिया जन को जगतमां, नांखे छे निश्वास । कया करम कीयां हशे, दुरिक्यो बारे मास ॥१५१॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy