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________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन. १६१ सुबे उठे पण नव गमे, जाणे क्यारे जाय । को स्वामी ! अलखामणो, छेकज शाथी थाय ॥९७॥ पूर्व भवे जिन बोलनी, करि उथापना भाई । अन्यवचन धिक्कारतो, अति करे अंतराई ॥ ९८ ॥ सुवास पोतानी वली, वधारवा बहु धाय । ईर्षा करतो राचतो, अंत दशा ए थाय ४४ को स्वामी ! क्रोधी जनो, घणा घणा तो थाय । क्रोध शमावे नहीं कदी, शा कर्मे थई जाय ॥ १००॥ पूर्व भवे जो लोभियो, थई न खरचे दाम । ॥ ९९ ॥ ए कृत्यना परिणामथी, थयो कोधियो ठाम ॥ १०१ ॥ ४५ को स्वामी ! ए शा थकी, अलाभ झाझो थाय । मूल मूडी कां जाय छे, ए.शी छे अंतराय ॥ १०२ ॥ भवे प्राणी जनो, पडाबी छे अंतराय । लाभ मले जो कोईने, मलवा दीध न भाय ॥ १०३ ॥ ४६ शब्द कठोर शा - कारणे, पामे जन तो कोम । मीठो न लागे मानवी, शा संजोगे होय ॥ १०४ ॥ आपी फांसी जीवने, मुख मूंगो दई घात । ए परतापे कंठ शुभ, मले नहीं साक्षात ॥ १०५ ॥ ४७ अवाज पामे खोखरी, केई जनोज खराब । कया करम कीधां हंशे, द्यो स्वामी ! जबाब ॥ १०६ ॥ सुकंठतणो मद बहु कर्यो, पूर्वभवे परमाण । हसा हसी पण बहु करी, मले सुस्वर ना जाण । १०७ ११
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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