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________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन. जल माहीं झबोलिया, त्रस थावर ने पाय । ए परतापे आंधलो, आ भवमां थई जाय ॥९॥ ३ गौतम पूछे प्रेमथी, हे भगवंत ! सुखदाय । अंधो बहिरो शा थकी, जीव एकलो थाय ॥ १०॥ पूर्वभवे मध पाडिया, नांखी छीता ज्यार । अज्ञाने अक्कल नहीं, मले दशा दुख दार ॥ ११ ॥ ४ गौतम पूछे प्रेमथी, हे महावीर ! भगवान | जनमतें आंखे न देखतो, शाथी ए नुकशान ॥१२॥ पूर्वभवे तो परखिया, स्त्रीना झाझां रूप । ए परतापे पामियो, खोटी कोडी कूप ५ गौतम पूछे प्रेमथी, कुल सिद्धारथ सार । ॥ १३ ॥ १५३ ॥ १५ ॥ कया करमथी कूबडा, जीव थाय आवार ॥ १४॥ चूरण कीधां सांवटा, एकेन्द्री जीव धार । ए परतापे कूबडा, जीव थाय आ वार ६ गौतम पूछे प्रेमथी, कहो हवे प्रभुराय ! | थंबडो नर शाथी थयो, शाथी ए निंदाय ॥ १६ ॥ चौपद पशुने बहु करी, भार भर्यो नर अंध । ए परतापे थंबड, कर्यो कर्मनो बंध ॥ १७ ॥ ७ गौतम पूछे प्रेमथी, हेप्रियकर - प्रभुराय ! | ठूंठो शाथी नीपजे, एनी कहो कथाय पूर्वभवे बींध्या घणा, पशुना नाकज कान । पामर पांखो तोडीने, जीवनुं करीयुं ज्यान ॥ १९॥ ॥ १८ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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