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________________ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ९१ सूतक टाली नाटक करीने, निज निज ठामे जावे जी । सूरिराजेन्द्रनी भक्ति करती, अनहद मोद मनावे जी ॥ १४४॥ ३८-३९ इन्द्रोनी संख्या अने तेना कृत्यो चोसठ सुरपतिनी, संख्या जाणो एह । वीस भुवनपतिना, बत्तीस व्यंतर लेह || दो चंद ने सूरज, दश देवलोकना सर्व । सहु जिन जन्मोत्सव, करता दिल गत- गर्व ॥ १४५ ॥ दश कारज करता, जिन प्रतिबिंब निवेसे । पंच रूप करीने, जिन अंक करी बेसे ॥ अडसहस ने चोसठ, कलशे स्नान कराय । गोशीर्ष सुचंदन, लेपे जिनवर गाय अंग अग्र बे पूजा, वस्त्र आभूषण चंग | मेली जननी पासे, अमृत अंगूठे संग || बत्ति सक्रोड सोनइया, वृष्टि अठाई कराय | दश कृत्य करे सहु, जिनना इन्द्र महाराय ॥ १४७ ॥ ॥ १४६ ॥ १ कोटाकोटी बावीश, पंचाशी लख कोडि । सहस इकोतर चारसो, अरु अट्ठाविस कोडि लख सत्तावन चौद सहस, दो शत पंचासि जान । इन्द्र एकना जन्ममें, भोग्यदेवी परिमान ( भोग्य इन्द्राणी संख्या ) ॥ १ ॥ ॥ २ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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