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________________ वीरस्स अडिअग्गामे अक्खाओ सूलपाणिणो; वेअणाओ कहं हुंती न हुँतं जइ कम्मयं ॥३॥ अर्थः-कर्मनुं अस्तित्व न होय तो अस्थिक गाममा शूलपाणियक्षथी समर्थ वीरभगवानने पण वेदना भो थइ ते केम संभवे. ३ दारुणाओ सलागाओ कन्नेसू वीरसामिणो; पख्खिवंतो कहं गोवो न हुंतं जइ कम्मयं ॥४॥ | अर्थः-जो कर्म न होय तो महावीर स्वामिना कानोमां गोवाळीए भयंकर खोला केम ठोक्या ? ॥ ४ ॥ वीसं वीरस्स उवसग्गा जिणिंदस्सावि दारुणा; * संगमाओ कहं हुंता न हुँतं जइ कम्मयं ॥५॥ ... अर्थ:- जो कर्म न होय तो तीर्थकर वीरपरमात्माने पण संगमदेवथी भयंकर वीस उपसर्गो केम थया. ? ॥ ५ ॥ गयसुकुमालस्स सीसंमि खाइरंगारसंचयं; है। परुिखवंतो कहं भट्टो न हुँतं जइ कम्मयं ॥६॥ अर्थ:-जो कर्म न होय तो गजमुकुमालना मस्तक उपर खेरनावळना अंगारा सोमिल नामना ब्राह्मणे नांख्या ते केम घटे. ६ || ४५
SR No.022111
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai Kakalbhai
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1915
Total Pages112
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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