SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - अर्थः-एकसो वर्षना चारसोने सातक्रोड अडतालीस लाख, चालीस हजार एटला श्वासोश्वास थाय छे. ॥११॥ इक्कोवि अ ऊसासो, न य रहिओ होइ पुण्णपावेहिं; | जइ पुण्णेणं सहिओ, एगोविअ ता इमो लाहो ॥१२॥ __ अर्थ:-तेमांची एक पण श्वासोश्वास पुण्य पाप रहित होय नहिः परंतु कोइ जीव जो एक श्वासोश्वास पुण्य सहित होय तो ने आगली गाथामां कहेशे तेटको लाभ थाय छे. ॥ १२ ॥ लख्ख दुग सहस पण चत्तं, चउसया अठचेव पलियाइं; किंचूणा चउभागा, सुराउ बंधे इगुसासे ॥१३॥ अर्थः-वे लाख, पीसताळीस हजार, चारसोने आठ पल्योपम वली काइक ओठा चार भाग, एटलं देवतानुं भायुष्य एक श्वासोश्वास धर्म करनारो पामे. ॥१३॥ | एगुणवीसं लख्खा, तेसही सहस्स दुसय सत्तठी; पलियाइं देवाउ, बंधइ नवकार उस्सग्गो॥ १४ ॥ ... अर्थः-ओगणीम लाख, ग्रेसठ हजार बसोने अटसठ पल्पोपमनुं देवायु नवकार गणनारो अथवा आठ श्वासोश्वाप्त धर्म सेवनारो पामे. ॥१४॥ लख्खिगसटी पणती-स सहस दुसय दसपलिय देवाउ; 20
SR No.022111
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai Kakalbhai
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1915
Total Pages112
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy