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________________ (५३) दूसरी विज्ञप्ति यह है कि जिन चीजों में ज्ञानि महाराज ने ज्ञान सेदेख के बहुत ज्यादा दोष बताये हैं उन चीजों को छोड़ना उचित है. १ विदल जिस अन्न की दो दाल (द्विदल ) हो जाय, और जिसमें से तेल नहीं निकले, उस अन्न को कच्चे दूध, दही, छाश के साथ अलग अथवा मिलाय के खाना बड़ा दोष कहा है. दही बगैरह खूब गरम करके साथ खाने में विदल का दोष नहीं है। २ श्राचार (आथाना) सब तरह का ( संधान )३ रोज बाद अभक्ष्य हो ___ जाता है. और शरवत व मुरब्बे का भी दिनों का प्रमाण करना चाहिये. ३ कंद मूल ३२ अनन्तकाय, यह सबसे ज्यादे दोष की चीज होनेसे बिल कुल छोडने लायक है। २२ अभक्ष्य के नाम १ वडके, २ पीपलके, ३ पिलखणके, ४ काठंबरके, ५ गूलरके फल, ६ मदिरा, ७ मांस, ८ मधु, 8 मक्खन, १० बरफ, ११ नशा, १२ ओले १३ मट्टि, १४ रात्री भोजन, २ बहु बीजा फल, १६ संधान ( प्राचार ) १७ द्विदल, १८ वेंगण, १९ तुच्छ फल, २० अजान फल, २१ चलित रस, २२ बत्तीस अनंतकाय । ३२ अनंतकाय के नाम सूरनकन्द १ वजकन्द २ हरहिलदी ३ सितावरी ४ हरा नरकचूर ५ अद्रक ६ विरियालीकन्द ७ कुंवारी-गुंवारपाठा ८ थोर ६ हरि गिलोय १० लस्सन ११ बांस करेला १२ गाजर १३-१४ लुनियां और लुढियां की भाजी १५ गिरिकर्णिका १६ पत्तेकेकुंपल १७ खरसुआ १८ थेगी १६ हरामोथा २० लोणसुखवली २१ विलहुडा २२ अमृतवेलि २३ कांदा-मुला २४ छत्र टोप २५ विदलके अंकूर २६ वथबे की भाजी २७ बाल २८ पालक २६ कुली आमली ३० आलू कन्द ३१ पिडालू ३२ - रात्रि भोजन सर्वथा न छूट सके तो दुविहारतिविहार पच्चख्खाण करना आवश्यक है - २२* अभक्ष्य श्रावक को जरूर ही छोडना चाहिये न छूटे तो जितना छूटे उतना छोडिये. थोडे से जिव्हा के स्वाद के वास्ते जीव पाप से भारी होकर भव भव में बहुत दुख पावे ऐसा नहीं करना चाहिये. इनसे ज़्यादे स्वादकी और चीजें वहुत हैं। . . ..
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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