SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४६) - - __राजाओं की राज्य नीति जैनाचार्यों ने बनाई थी वो प्रचलित नहीं है जिससे अज्ञान दशा में चाहे ऐसा मूर्ख बोले किंतु अर्हन नीति पढकर विद्वान ऐसा विचार कभी न करेगा कि जैन धर्म से निर्बलता आती है। किंतु इतना समझेंगे कि यदि जैन धर्म बढ़ा तो आज युद्ध में जो अधम रीति से बंम गोलों का निर्दोष औरत और बच्चों का प्राण घातक अत्याचार हो रहा है वो मिट जावेगा क्योंकि जैन धर्म से कर्म फल को याद रख कर राजा को भी पीछे उस सब कृत्य का यथोचित, फल भोगना पड़ेगा वो भूल नहीं जावेगा। श्रावकों के बारह व्रत का वर्णन । जैन धर्म में तीन रत्न मुख्य हैं, वे ( १ ) सम्यग् दर्शन ( २ ) ज्ञान और (३) चारित्र हैं। सम्यग् दर्शन दो प्रकार का है व्यवहार और निश्चय । . व्यवहार दर्शन दूसरा भी जान सक्ता है, निश्चय सम्यक्त्व को केवल ज्ञानी जानते हैं कुछ अंश में अवधि ज्ञानी मन पर्यव ज्ञानी भी जानते हैं व्यवहार सम्यक्त्व देव गुरु धर्म को अंगीकार करने से होता है । (१) देव वीतराग निस्पृह केवल ज्ञानी हैं जिनको अर्हन् जिनेश्वर, तीर्थंकर नाम से कहते हैं ( २४ तीर्थ करके नाम लोगस में बोलते हैं उनका चरित्र पढ उनके गुण जान लेने ) वीतराग सिवाय देव को. कुदेव कहते हैं यदि कुदेव में देवपणा माने तो संसार में भ्रमण होता है। . (२) गुरु साधु मुनि श्रमण को कहते हैं वो भी त्यागी निस्पृही होते हैं यदि जो रागी को गुरु माने तो वो तार नहीं सका।। (३) धर्म, दया, विवेक, और संवर, रूप है. जो इन तीन गुण रहित हो तो वो धर्म के नाम से अधर्म है। __ जैसे अशक्त पुरुषको वैद उपकारक है ऐसेही ऊपर के तीन रस्म सामान्य पुरुष को हितकारक हैं इनके जरिये कम बुद्धि वाला भी सुबुद्धि वाला होकर श्रात्मा का और कर्म का संबंध जान सक्ता है पीछे आत्मा में दृढ विश्वास
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy