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________________ (४४) - समय मिलने पर सेवा करे, धर्म सुने और करे वो मध्यम श्रावक है. प4 दिन में जो सेवा करे, धर्म सुने और करे वो जघन्य श्रावक है. साधु के वारंवार जरा भी प्रमाद से दोष देख कर, उसका अपमान कर आप न धर्म कथा सुने, न सुनने देवे, बीच में विघ्न करे वो अधर्मी श्रावक है. ___ यहां पर कहने का यह है कि साधुमें दोष देखनेमें आवे तो विनयपूर्वक एकांत में कह कर सुधारना वो तो अच्छा है और गुणज्ञ साधु ऐसी बातों सुन कर सुधर जाता है और न सुधरे तो मिष्ट वचनों से पीछे श्रावक प्रकट भी कह सकता है और इतने से भी न सुधरे और अनाचार से दूसरों को पतित करे जैन धर्म की हीलना करावे तो ऐसे साधु को श्री संघ ( श्रावक धाविका साधु साध्वी ) मिल कर उसे दूर भी कर सक्ने हैं किंतु अल्प दोष से वारंवार साधु का जाहिर अपमान करना अनुचित है साधु के उपदेश सुने इस अपेक्षा से चार प्रकार के श्रावक बताते हैं. (१) गुरुने कहा वो संपूर्ण सुन कर हृदय में धार लेवे. वो आयना स मान श्रावक है क्यों कि आयना में पूर्ण रूप पड़ता है. ऐसे ही वो श्रावक में धर्मोपदेश का पूर्ण असर होता है - (२) साधु के पास सुन फिर भूल जावे वो पताका समान, पताका (ध्वजा ) पवन से बार बार हालता है ऐसे ही वो श्रावक धर्म पा कर फिर फिर मिथ्यात्व में मूढ हो कर धर्म को छोड़ देता है. (३) विनय न करे किंतु निंदा भीन करे और धर्म सुने किंतु करे नहीं वो स्थाणु (पेडका सूखा लकड ) माफक है. (४) खरट्टक समान श्रावक उसे कहते हैं कि स्वयंशिथील ( ढीला) होने पर भी अशुचि द्रव्य जरा ठोकर लगते उछल कर कपड़ा बिगाड़ता है. ऐसे ही वो श्रावक को जरा भी साधु उपदेश देवे कि दश बीस अनुचित शब्द सुनाकर साधु का अपमान कर धर्म नहीं पा सक्ता । - ऐसे और भी दृष्टांतों से समझ श्रावक को प्रथम कुछ भी गुण प्राप्त " करना चाहिये।
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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