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________________ (४०) इस दृष्टांत से ज्ञात होगा कि उस आर्य रक्षितमें लब्ध लक्ष्य गुण था तो माता के आचरण की बात समझ विद्वान् और धर्म प्रेमी होगया इस तरह श्रावक धर्म पाने पाले में यह गुण होगा तो प्रत्येक कार्य थोडे कष्ट में पार उतारेगा। ऊपर कहे हये २१ गुणों का वर्णन सूत्रानुसार कह बताया है और मिसमें ये गुण हैं वो ही धर्म रत्न सुख से प्राप्त करेगा अर्थात् २१ गुण धारक पुरुष शीघ्र धर्म पासक्ने हैं। ___२१ गुणों को वर्णन समाप्त यदि किसी में जो २१ गुण न हो तो बोधर्म पासके वानहीं इस बारे में कहते हैं कि यदि जो २१ गुण पुरे न हो तो जितने कम, इतने अंश में उसे क.म लाभ मिलेगा ११४ चोथा हिस्सा कम हो तो मध्यम, और आधा होतो जघन्य, और उससे भी कम गुण होतो वो पुरुष कंगाल की गिनती में है, अर्थात् जैसे निर्धन रंक पुरुष इच्छा करे तो भी उसे लोकमें कोई रत्न नहीं देता अथवा वो खरीद नहीं कर सका ऐसे ही गुण रहित पुरुष धर्म प्राप्ति नहीं कर सक्का इसलिये धर्म रत्न के अर्थिओंको प्रथम उपरोक्त २१ गुण प्राप्त करने का उद्यम करना चाहिये जैसे कि उत्तम जमीन में वोया हुआ बीज अधिक उत्तम फल उत्पन्न करता है तथा स्वच्छ भूमी में खेंचा हुआ चित्र अच्छी शोभा देता है। द्रष्टांत. साकेत ( अयोध्या ) में महाबल राजा था उसने एक दूत से पूछा कि मेरे राज्य में सब वस्तु है वा नहीं दूत ने कहा कि एक चित्र सभा सिवाय सब वस्तु है, राजाने उसी समय मंत्री को कह कर एक बड़ा विशाल मकान चित्र सभा के लिये तैयार कराया और विमल और प्रभास नाम के दो चितारों को बुलाये दोनों चितारे आने पर दोनों मंडप में भिन्न भिन्न दोनों को बैठायें और परस्पर विना देखे अपनी बुद्धि अनुसार उत्तमोत्तम चित्र बनाने का कहा, उन्होने
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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