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________________ * श्री * ॥ धर्मरत्न प्रकरण || श्रेयांसो भवतां सदाऽभिलपितं कुर्यात्स्व चित्तेधृतो मान्यो यत् शिव बांध निशि दिने कारुण्य राशिविंभुः तंनत्वा सुगुरुं तथा मुनिवरं पन्यास हर्ष मुदा कुर्वे रत्न समंगुणा नुकथनं श्राद्धार्थ सौ ख्यावहं . १ जिस पुरुष को भली बुरी वस्तु का ज्ञान है, जो संसार में जन्म मरण व्याधि के संताप से पीड़ित हो, और जिस को कुछ अंश में कोमल भाव प्रकट हुआ हो, ऐसे भव्य जंतु को स्वर्ग मोक्ष के सुख और संपदा देने वाला रत्न समान अमूल्य जैन धर्म आराधन करने योग्य है. धर्म रत्न को प्राप्त करने में गुरु महाराज के सुबोध की आवश्यकता है. • इसलिये परम गुरु श्रीजिनेश्वर ने गणधर भगवंतों द्वारा सिद्धांत सागर में वाक्य रत्नों का ढेर रक्खा है, उससे वर्तमान समय के अनुसार धर्म रत्न प्रकरण नाम का ग्रंथ श्री शांति सूरि महाराज ने मागधी गाथा और संस्कृत माटीका कथा के साथ बनाया है, और आत्मानंद जैन सभा भावनगर ने छपवाया है, उस ही का सार लेकर सद्गुरुपन्यास हर्ष मुनिजी की कृपा से हिंदी भाषा में श्रावक के गुणों का कथा के साथ वर्णन करता हूँ । वीर प्रभु जो हमारे शासन नायक हैं उन्हीं से हमें धर्म " रत्नकी" प्राप्ति हुई है और हमारे गुरु भी उन्हीं का ध्मान करते हैं जिसका बरि ऐसा मंत्र सुनते ही पाप और विघ्न सब दूर होजाते हैं उन्हीं का स्मरण कर भव्या त्माओं के हितार्थ मैं उस ग्रंथ का आरंभ करता हूं ।
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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