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________________ (२.) व उतारूंगा आप अब यहां से बिहार करें क्योंकि आपने मुझे चक्रवर्ती के पदसे भी अधिक उत्तम पद पर स्थापन किया है किंतु संसार में रक्त मेरे मा बाप और सासु सुसरे को यह बात नहीं रुचेगी वे बिघ्न कर मुझे घर को ले जायेंगे और जैन धर्म की हीलना करेंगे गुरुने कहा अंधेरे में मुझे दीखता नहीं है वो बोला मैं उठा लेता हूं दोनों उप करण लेकर चले रास्ते में गड्डे आने पर चेला ठोकर खाने लगा तब पीड़ा होने से गुरु ने उस के माथे पर मारना शुरू किया तो भी लड़का हिम्मत रख चलने लगा फिर ठोकर खाने पर गुरु ने उसे अधिक पीट कर कहा हे दुष्ट ! ऐसा टेढ़ा रास्ता क्यों लेता हे ! तो भी चेला मन में विचारने लगा ? कि मैं कैसा अधम हूं गुरु की सेवा के बदले ऐसे दुख देने को टेढ़े रास्ते में ले जाता हूं ? इस तरह पवित्र भावना में चलते हुये और ठोकरें खाने से पग में लोहू नीकल ने से और लोच किये हुये मस्तक में मार पड़ने से बहुत पीडित होने पर भी क्रोध न करने के कारण उसने थोड़ी देर में तपक श्रेणिक प्राप्त की और केवल ज्ञानी हुआ तब सब प्रत्यक्ष दीखने से वह सीधा चलने लगा गुरु बोले अब कैसे सीधा चलता है ! उसने कहा आपकी कृपा से मुझे दीखता है गुरु वोले मुझे क्यों नही दीखता वो बोला कि आपके प्रताप से, ज्ञान हुआ है गुरू ने पूछा कि केवल ज्ञान हुआ है! उसने कहा हां गुरू नीचे उतर कर पश्चात्ताप करने लगे कि मैं ने कैसा अधम कृत्य किया है ऐसे उत्तम पुरुष को व्यर्थ दंड दिया है। क्या यह साधुता थी कि ऐसे कोमल लोच किये हुए सिर पर मैं ने पीटा ऐसा पश्चात्ताप करने से उनको भी केवल ज्ञान हुआ दोनों जगत्पूज्य हो आठ कर्म का नाश कर क्रम से मुक्ति को गये इस दृष्टांत से यह बताया है कि लज्जालु पुरुष अनर्थ नहीं करता, और कदाच भूल से दूसरों को पीडक होजावे तो भी पीछे इस सुशिष्य की समान अनेक कष्ट आने पर भी अपना दोष समझ भविष्य में दूसरों को पीडक नहीं होता व्यवहार में भी जो जो वचन मुंह से निकाले वो पूर्णतया विचार कर निकाले और निकल बाद उसे बराबर पार उतारे क्योंकि उसके वचन से दूसरे पुरुष विश्वास कर दूसरों से व्यवहार करते हैं उस वक्त जो वो कह देवे कि मैंने तो हांसी में कहा था तो दूसरे अच्छे पुरुष बीच में फंस जाते हैं। ... ..
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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