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________________ " ( १७ ) और उसने अपना मित्र जो अभय कुमार नाम का राज पुत्र था और बड़ा, मंत्री था उससे पूछा कि अब मैं क्या करूं ? लड़के की बात सुनकर अभय कुमार ने कहा कि तेरे बाप ने जो पाप किये हैं उसका कुछ फल यहां भोग रहा है उसे चंदन के लेप से शान्ति नहीं होवेगी, किन्तु जो दुर्गंधि का लेप करे तो शान्ति होवे, बेटे ने बाप की बिना इच्छा के ही शांति के लिये अ शुचि पदार्थ का लेप कराया, इससे बाप को कुछ शांति हुई, तब वो शांति से मरा, और अपने कृत्यों का फल भोगने को नर्क में गया. सुलस कुमार ने बाप का धन्धा छोड़ दिया और दूसरा धन्धा करने लगा, रिस्तेदारों ने उसे समझाया कि बाप का धन्धा मत छोड़ उसने कहा कि पाप का फल कौन भोगेगा ? लोगों ने कहा अपन सब बांट लेवेंगे । यह सुनकर सुलस ने अपने पैर पर कुहाड़ा मार कर घाव कर लिया और जोर से बोला आके भाइयों मेरा दुःख बंटालो ! किसी ने दुःख नहीं लिया और बोले कि हम चाहते हैं कि वांटले परन्तु लेने का कोई उपाय नहीं है, तब सुलस ने कहा कि यहाँ देखते हुये भी दुःख नहीं ले सक्ने तो परलोक में लेने को कैसे आवोगे ! ऐसा कह कर उस सुलस कुमार ने वीर प्रभु के पास जाकर जैन धर्म पाकर श्रावक के व्रतों को लेकर निर्दोष जीवन वृति को निर्वाह करके वो स्वर्ग का भागी बना । बाप बेटों और रिस्तेदारों के दृष्टांत से आप लोगों को खयाल रहे कि धर्म पालने से पहिले इस पाप भीरुता गुण को प्राप्त करो । ॥ सातवां शठता ॥ अशठ पुरुष निर्मल स्वभाव का होता है वो किसी को ठगता नहीं जिससे लोग उसकी प्रशंसा करते हैं और उसके बचन पर विश्वास करते हैं, 'और जो कपटी शठ होता है वो कोई दिन अपराध न करे तो भी उसकी रोज की बुरी आदत से लोग उस से डर कर उसका विश्वास नहीं करते, जैसे कोई को सर्प न काटे तो भी सर्प के काटने के स्वभाव से ही उससे डरते हैं कपटी ऊपर से मीठा भी बोले तो भी सब डर कर उससे दूर भागते हैं हंसी ठट्ठा समझ कर उसका विश्वास नहीं करते, गुरु महाराज भी उसको व्रत पचलाया देते डरते हैं, इस लिये ऊपर से भी उचित वचन बोले श्रौ .
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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