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________________ (ह) है कि सस्य वचन बोल कर दूसरों का अपमान करे ? मुनि ने कहा, हे नरेन्द्र । जरा धैर्य रखो, आप उस वचन का परमार्थ नहीं समझे ? जिसको पर लोक का ज्ञान नहीं पुण्य पाप मालूम नहीं वो अनाथ है क्योंकि इस भव में पूर्व के पुण्य से सुख भोग कर जन्म हार जाता है और दुर्गति के दुःख अनाथ होकर भोगेगा परंतु यहां पर भी पूर्व के पापों के उदय से कष्ट भोगना पड़ता है । ★ श्रेणिक आप को भी कष्ट पड़ा है ? मुनि - मेरा चरित्र थोड़ा सा सुनो- इस संबी नगरी वसे, मुझ पिता परिगलधन, पुरिवार पुरे परिवर्ये। हू छू तेहनो पुत्र रतन ! श्रे - २ एक दिन मुझ बेदना, उपजी ते न खमाय । मात पिता भूरी मरे, परण किये समाधिन थाय, ३ ॥ बहु राज्य वैद्य बोलाविया, किधा कोडी उपाय | बावना चंदन चरचीयां, पण किरणे समाधिन थाय थे, ४ ॥ गोरडी गुणमणी औरडी, चोरडी अबला नार । कोरडी पीडा में सही, कोने कीधी न मोरडी सार थे, ५ ॥ मैं कोसंबी नगरी में रहने वाला नगर श्रेष्टि का पुत्र हूं, और राज्य रिद्धि और परिवार से स्वर्ग का सुख वहां भोग रहा था, और रात दिन किस तरह जाते हैं वो भी मालूम न था । एक दिन शरीर में शूल का रोग हुआ अग्नि ज्वाला की तरह शरीर भीतर में जलने लगा, तब मैंने पुकार करना शुरु किया, मात पिता भी रोने लगे, बड़े बड़े राज्य वैद्य आकर बावना चंदन से लेप करने लगे, मेरी औरत जो रूप सुंदरी थी वो भी रोने लगी किंतु मेरी पीडा किसीने न ली, न कोई सहायक हुए, न मुझे समाधि हुई इसलिये मैं अनाथ होगया था. और मेरा नाम मैंने नाथ रक्खा | जग मेंको केनो नहीं, तेभणी हूंरे अनायें । वीत रागना धर्म सारीखो, नहीं कोई बीजो मुक्तिनो साथ, ६ - ॥
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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