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प्रशमरतिप्रकरणकी विषय-सूची।
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विषय पृष्ठांक विषय
पृष्ठांक संस्कृतटीकाकारका मंगलाचरण
३-तृतीय अधिकार-रागादि- कारिका २४-३३ मूलग्रन्थकर्ताका
बन्धनके आठ भेद
२६ भाषाटीकाकारका
४-चतुर्थ अधिकार-आठ कर्म- कारिका ३४-३८ ग्रन्थकारकी ग्रन्थ बनानेकी प्रतिज्ञा सर्वज्ञ-शासनमें प्रवेशके अधिकारी
उत्तरकर्मबंधके भेद
२६
बन्धके कारणोंका वर्णन १-प्रथम अधिकार-पीठबन्ध- कारिका १५
लेश्याका स्वरूप तथा उसके भेद ग्रन्थकारकी लघुता
आत्माके साथ कर्मबन्ध हो जानेपर क्या होता है ? ३१ महामति आचार्योने जो शास्त्र रचे हैं तदनुसार
मोहान्ध जीव भले बुरेका विचार न कर सुखका ही ग्रन्थ बनानेकी प्रतिज्ञा
प्रयत्न करता है, पर दुःखका कारण होता है ३२ भक्ति और प्रेमवश वैराग्य उत्पन्न करनेवाली रचना बनानेका कथन
५-पंचम अधिकार-पंचेन्द्रिय विषयसजनोंका स्वभाव
कारिका ३९-७९ वैराग्यमार्गकी पगडंडी विद्वानोंको कैसे सम्मत
पाँचों इन्द्रियोंके पाँच विषय और उसके दृष्टान्त होगी! इस शंकाका दृष्टान्त सहित समाधान ११
कर्णेन्द्रियके वशीभूत हिरणके नाशका दृष्टान्न पूर्वाचार्योंके रचे अनेक ग्रन्थ हैं, फिर नया ग्रन्थ
घ्राणेन्द्रियके वशीभूत भौरेंके नाशका दृष्टान्त क्यों बनाते हो? इसका समाधान, मंत्रके
जिह्वाइन्द्रीके वशीभूत मीनके नाशका दृष्टान्त दृष्टान्त सहित
स्पर्शनेन्द्रियके वशीभूत हाथीके नाशका दृष्टान्त वैराग्यभावनाको दृढ़ करनेका उपदेश १४ पाँचों इन्द्रीके वशीभूत असंयमी जीवकी दशा बैराग्यके पर्यायवाची शब्द
ऐसा कोई विषय नहीं जिसके बार बार सेवन
१६ करनेसे तृप्ति होती हो द्वेषके , ,
१६ अनिष्ट विषय भी इष्ट लगने लगता है, इष्ट विषय किन किन कामोंके करनेसे आत्मा राग-द्वेषके वशी.
भी अनिष्ट भूत होता हैं ?
१७/ जीव प्रयोजनके अनुसार इन्द्रिय-व्यापार करता है २-द्वितीय अधिकार-कषाय- कारिका १६-२३ | अस्थिर प्रेमवाले विषय वास्तवमें न इष्ट होते हैं कषायवान् आत्माकी क्या दशा होती है ? १९ न अनिष्ट
३८ सब अनर्थों का कहना शक्य नहीं, मोटे मोटे रागी द्वेषी जीवके इसलोग और परलोकमें किसी अनर्थों को बतला देनेसे भव्यजीवोंकी रक्षा होगी २० जीवों की रक्षा होगी२० गुणकी संभावना नहीं
३९ क्रोधकषायका वर्णन
कर्मबन्ध होनेके सिवाय अन्य गुण न होनेका कारण ३९ मान , ,
२२/ आरमाके प्रदेशोंसे कर्मपुद्गल कैसे चिपटते हैं ? ३९ माया , "
२३ राग-द्वेष प्रमुख कर्मबन्धके समी कारणोंका उपसंहार ४० कषायोंके मूल दो पद, ममकार अहंकारका वर्णन २५, राग-द्वेषसे उत्पन्न संसार-चक्र तोड़नेका उपाय
रागके
,
"