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________________ कारिका २१६-२१७-२१८] प्रशमरातप्रकरणम् भावार्थ-आठ प्रकारका स्पर्श, पाँच प्रकारका रस, दो प्रकारकी गन्ध और पाँच प्रकारका रूप--ये सब पुद्गलके गुण होनेसे पुद्गलका ही उपकार समझना चाहिए। शब्द भी पुद्गलकी ही पर्याय है। परमाणुका परमाणुके साथ अथवा कर्मपुद्गलोंका आत्माके प्रदेशोंके साथ जो दूधपानीकी तरह बन्ध होता है, वह भी पुद्गलका ही उपकार है । अनन्तानन्तप्रदेशी स्कन्धोंका भी अदृश्य होना, और बादल, इन्द्रधनुष आदिका स्थूल होना भी पुद्गलका भी उपकार है । तिकोन वगैरह आकार, घड़े आदिके टुकड़े, अन्धकार, छाया चाँदनीका प्रकाश, सूर्यका प्रकाश ये सब पुद्गलके ही कार्य हैं । तथा जिन स्कन्धोंसे संसारी जीवोंके कर्म, शरीर, मन, वचन, श्वास, उच्छास वगैरह बनते हैं, जिनके सेवनसे उन्हें सुख और दुःखका अनुभव होता है और जो उनके जीवनमें सहायक हैं--जैसे दूध, घी आदि और जो उनकी मृत्युमें कारण हैं, जैसे-विष वगैरह-वे सब पुद्गलके ही कार्य जानना चाहिए। कालकृतोपकारदर्शनायाहकाल और जीव द्रव्यका उपकार बतलाते हैं: परिणामवर्तनाविधिः परापरत्वगुणलक्षणः कालः । सम्यक्त्वज्ञानचारित्रवीर्यशिक्षागुणा जीवाः ॥ २१८ ॥ टीका-परिणामास्तावद्वर्धतेऽङ्कुरो हीयते वाऽपक्षीयते विनश्यतीत्यादिकः कालजनित उपकारः । वर्त्तनेति-वर्तत इदं कालापेक्षमेतदभिधानं प्रयुञ्जन्ते विद्वान्सः । वर्तनायाः विधिः प्रकार उक्तेन न्यायेन । परत्वमपरत्वं च कालकृतम् । पञ्चाशद्वर्षात्पञ्चविंशतिवर्षोऽपरः, पञ्चविंशतिवर्षात्पञ्चाशद्वर्षःपरः । एवं परिणामादिगुणलक्षणः कालः परिणामादिभिर्यथोक्तैर्लक्ष्यतइत्यर्थः । अथ जीवाः केनोपकारेणोपकुर्वते ? सम्यक्तवाद्युत्पादनेन । तत्र तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षणं सम्यक्वमुक्त्वमुत्पादयन्ति । ज्ञानं श्रुताद्यधिगमयन्ति। चारित्रं क्रियानुष्ठानमुपदिशयन्ति । वीर्य शक्ति विशेषं दर्शयन्ति। शिक्षा लिप्यक्षरादिसंविज्ञानं जनयन्ति। एते जीवक्रिया (कृता) उपकाराः॥२१८॥ ___अर्थ–परिणाम, वर्तनापरत्व और अपरत्व गुण कालद्रव्यके हैं । और सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र, वीर्य और शिक्षा जीव द्रव्यके गुण हैं। ___ भावार्थ-अंकुरका फूटना, उसका बढ़ना अथवा घटना, इत्यादि परिणाम काल द्रव्यका उपकार है। 'अमुक वस्तु है ' इत्यादि ब्यवहारको वर्तना कहते हैं। यह वर्तना भी कालका ही उपकार है; क्योंकि कालके निमित्तसे ही--'है' आदि व्यवहार होता है । पचास वर्षके आदमीकी अपेक्षासे पच्चीस वर्षका युवक ऊपर--छोटा कहलाता है । और पचीस वर्षके युवककी अपेक्षासे पचास वर्षका आदमी पर-बड़ा कहलाता है । यह छोटा-बड़ा व्यवहार भी काल द्रव्यका ही कार्य है। इन १-" वण्णरसगंधफासा विज्जते पोग्गलस्य सुहुमादो। पुढवीपरियंतस्स य सद्दों सो पोग्गलो चिन्तो॥" २-वर्षोंऽपरः मु.। --श्रीकुन्दकुन्दाचार्यकृत प्रवचनसार २४० । प्र०२०
SR No.022105
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1951
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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