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________________ श्राद्धविधि प्रकरण कर दिया, यह बात तू सब जानता ही है । इसके बाद चंद्रशेखर ने कामदेव नामक यक्ष को आराधना की। इस से वह प्रत्यक्ष होकर पूछने लगा कि मुझे क्यों याद किया है ? चंद्रशेखर ने चंद्रवतो का मिलाप करा देने को कहा, उस वक्त यक्ष ने उसे अदृश्य होने का अंजन दिया और कहा कि जब तक चन्द्रवतो से पैदा हुए पुत्र को मृगध्वज राजा न देखेगा तब तक तुम दोनों को पारस्परिक गुप्त प्रीति को कोई भी न जान सकेगा! जब चन्द्रवती के पुत्र को मृगध्वज राजा देखेगा उस वक्त तुम्हारी तमाम गुप्त बात खुलो हो जायेंगी। यक्ष के ऐसे वचन सुन कर अत्यन्त प्रसन्न हो चंद्रशेखर चन्द्रवती के पास गया और बहुत से समय तक गुप्त रीति से उस के साथ कामक्रीड़ा करता रहा । परंतु उस अदृश्य अंजन के प्रभाव से वह तुझे एवं अन्य किसी को भी मालूम न हुवा । चन्द्रशेखर के संयोग से चन्द्रवती को चन्द्रांक नामक पुत्र हुवा तथापि यक्ष के प्रभाव से उस के गर्भ के चिन्ह भी किसी को मालूम न दिये। पैदा होते ही उस बालक को ले जाकर चन्द्रशेखर ने अपनी पत्नी यशोमति को पालने के लिए दे दिया था। उसने भी अपने हो बालक के समान उसका पालन पोषण किया। प्रति दिन वृद्धि को प्राप्त होते हुए चन्द्रांक यौवनावस्था के सन्मुख हुआ । चन्द्रांक के रूप लावण्य से मोहित हो पतिवियोगिनी यशोमति विचारने लगा कि, मेरा पति तो अपनो बहिन चन्द्रवती के साथ इतना आसक्त हो गया कि मेरे लिये उस का दर्शन भी दुर्लभ है । अब मुझे अपने हो लगाये हुये आन के फल आप ही खाना योग्य है । अतिशय रमणिक चन्द्रांक के साथ क्रीड़ा करने में मुझे क्या दोष है ? इस प्रकार बिचार कर विवेक को दूर रख के उसने एक दिन मीठे ववनों से हाव भाव पूर्ण चन्द्रांक से अपना अभिप्राय मालूम किया। यह सुन कर वजाहत हुये के समान वेदना पूर्ण चन्द्रांक कहने लगा कि माता! न सुनने योग्य वचन मुझे क्यों सुनातो हो ? यशोमति बोला कि हे कल्याणकारी पुरुष! मैं तेरो जननी माता नहीं है, तो जन्म देने वाली तो मृगध्वज राजा को रानी चन्द्रवतो है । सत्यासत्य का निर्णय करने में उत्सुक मन वाला यह चन्द्रांक यशोमति का ववन कबूल न करके अपने माता पिता की खोज करने के लिए निकल पड़ा, परन्तु सब से पहले यह आप को ही मिला । दोनों से भ्रष्ट हुई यशोमति पति पुत्र के वियोग से वैराग्य को प्राप्त हो कोई जैन साध्वी का संयोग न मिलने पर योगिनि का वेष धारण कर फिरने वालो मैं स्वयं हो (यशोमति) हूं। सचमुच धिक्कारने योग्य स्वरूप का विचार करने से मुझे जितना ज्ञान उत्पन्न हुवा है, उससे मैं जानकर कहता हूं कि, हे मृगध्वज राजा! यह चन्द्रांक जब तुम्हें मिला तब उसी दक्ष यक्ष ने आकाश वाणा द्वारा तुम्हें कहा कि यह तेरा ही पुत्र है तथा तत्संबंधी सत्य घटना विदित कराने के लिये तुझे मेरे पास भेजा है। इसलिये तू सत्य हो समझना कि यह तेरी स्त्री चन्द्रवती के पेट से पैदा होने वाला तेरा ही पुत्र है। ___ योगिनी के वचन सुनकर राजा को अत्यन्त क्रोध और खेद उत्पन्न हुचा। क्योंकि अपने घर का दुराचार देख कर या सुन कर किसे दुःख नहीं होता । तदनन्तर राजा को प्रतिबोध देने के लिए योगिनी बोधवचन पूर्ण गीत सुनाने लगी। गीत कवण केरा पुत्ता मित्ता, कवण केरी नारी; मोहे मोह्यो मेरी मेरी, मूढ गणे अविचारी ॥१॥
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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