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________________ श्राद्धचिधि प्रकरण प्रतिष्ठा करानेका विधि तो इस प्रकारका बतलाया है कि सब प्रकार के उपकरण इकट्ठ करके, नाना प्रकारके ठाठसे श्री संघको आमंत्रण करना, गुरु वगैरह को आमंत्रण करमा, उनका प्रवेश महोत्सान करना, कैदिओंको छुड़ाना, जीवदया पालना, अनिवारित दान देना, मन्दिर बनाने वाले कारीगरों का सत्कार करना, उत्तम वाद्य, धवल मंगल महोत्सवपूर्वक अष्टादश स्नात्र करमा कौरह विधि प्रतिष्ठाकल्फ से जानना। प्रतिष्ठामें स्नात्र पूजासे जन्मावस्था को, फल, नैवेद्य, पुष्पनिलेपन, संगीतादि उपचारों से कौमारादि उत्तरोत्तर अवस्था को, छद्मस्थावस्था सूचक आच्छादनादिक से, वस्त्र वगैरह से प्रभुके शरीरको सुगन्ध अधिवासित करना वगैरह से चारित्रावस्था को, नेत्र उन्मीलन ( शलाकासे अंजन करते हुए ) केवलज्ञान उत्पत्ति अवस्था को सर्व प्रकारके पूजा उपकरणों के उपचार से समवशरणावस्था को बिचारना । ( ऐसा श्राद्ध समाचारी वृत्तिमें कहा है) प्रतिष्ठा हुए बाद बारह महीने तक प्रतिष्ठाके दिन विशेषतः स्मात्रादिक करना। वर्षके अन्तमें अठाई महोत्सवादि विशेष पूजा करना। पहलेले आयुष्य की गांठ बांधनेके समान उत्तरोत्तर विशेष पूजा करते रहना। (वर्षगांठ महोत्सव करना) वर्षमांठ के दिन साधर्मिक वात्सल्य, संघ पूजादिः यथाशक्ति करना। प्रतिष्ठाषोडशक में कहा है किअष्टौ दिवसान यावत पूजा विच्छेदतास्य कर्तव्या। दानं च यथाविभवं, दातव्यं सर्वसत्वेभ्यः॥ आठ दिन तक अविच्छिन्न पूजा करनी, सर्व प्राणिओंको अपनी शक्तिको अनुसार दान देना। सप्तमः द्वार पूर्ण ॥ पुत्रादिक की दीक्षा ८वां द्वारः-प्रौढ़ महोत्सव पूर्वक पुत्रादिको आदि शब्दसे पुत्री, भाई, वाचा, मित्र; परिजन वगैरह को दीक्षा दिलाना। उपलक्षण से उपस्थापना याने उन्हें बड़ी दीक्षा दिलाना। इसी लिये कहा है कि- . पंचय पुत्त सयाइभरहस्सय सत्तनत्तु सयाइ। सयाराहं पवइया, तंभिकुमारा समोसरणे । ऋषभदेव स्वामीके प्रथम समवसरण में पांच सौ भरतके पुत्रोंको एवं सात सौ पौत्रों (पोते ) को दीक्षा दी। कृष्ण और चेड़ा राजाको अपने पुत्र पौत्रिओंको विवाहित करनेका भी' नियम था। अपने पुत्र पौत्रिओंको एवं अन्य भी थावच्चा पुत्रादिकों को प्रौढ महोत्सव से दोक्षा दिला कर सुशोभित किया था। यह कार्य महा फलदायक है। इसलिये कहा है किते धन्ना कयपुत्रा, जणभो जणणीभ सबलबग्गीम। जेसि कुसंपि जायई, चारित धरो महापुले ॥१॥
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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