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________________ श्राद्धविधि प्रकरण ४२५ उस वक्त वहां पर टीमाणी गामके रहने वाले घी की कुलढीका व्यापार करने वाले भीम नामक श्रावकने घी बेचनेसे छह ही रुपये जमा किये थे, उसने वे छह ही रुपये चंदेमें दे दिये। इससे खुश हो कर समस्त श्रीमतों ने मिल कर उस चंदेमें सबसे ऊपर उसका नाम लिखा। फिर उसे जमीनमें से एक सुवर्णमय निधान मिलनेका दृष्टान्त प्रसिद्ध है। _ सिद्धाचलजी पर पहिले काष्ठका मन्दिर था। उसका जीर्णोद्धार करा कर पाषाण मय मन्दिर बनाते हुए दो वर्ष व्यतीत हुए। मन्दिर तय्यार होनेकी जिसने प्रथम आ कर बधाई दी उसे वाग्भट्ट मन्त्रीने सोनेकी बत्तीस जीम बनवा दीं। कुछ समयके बाद वही मन्दिर बिजली वगैरहसे गिर जानेके कारण दूसरे किसीने जब मन्दिर के पड जानेकी खबर दी तब वाग्भट मन्त्रीने विचार किया कि, अहो मैं कैसा भाग्यशाली हूं कि जिसे एक ही जन्म में दो दफा जीर्णोद्धार करने का सुअवसर मिल सका। इस भावना से उसने तत्काल ही खबर देने वाले मनुष्य को सुवर्ण की चौंसठ जीभे सहर्ष समर्पण की। फिर दूसरी दफै मन्दिर तय्यार कराया। इस प्रकार करते हुये उसे दो करोड़ सत्ताणवे लाग्नका खर्च हुआ था। मन्दिर की पूजाके लिये उसने चौबीस गांव और चौबीस बगीचे अर्पण किये थे। बाहड़दे के भाई अंबड मन्त्रीने भरूच नगरमें दुष्ट व्यन्तरी के उपद्रव निवारक श्री हेमावाय महाराज के सान्निध्य से अठारह हाथ ऊंचा शकुनीका बिहार नामक मन्दिर का उद्धार किया था। मल्लिकार्जुन राजाके भंडार का बत्तीस घड़ी प्रमाण सुवर्ण का कलश और ध्वज दंड चढ़ाया था। आरती, मंगलदीवा के अवसर पर बत्तीस लाख रुपये याचकोंको दानमें दिये थे। इस लिए जीर्णोद्धार पूर्वक ही नवीन मन्दिर कराना उचित है। इसी कारण संप्रति राजाने सवा लाख मन्दिरों में से नवासी हजार जीर्णोद्धार कराये थे। ऐसे ही कुमारपाल, वस्तुपाल वगैरह ने भी नये मन्दिर बनवाने की अपेक्षा जीर्णोद्धार ही विशेष किए हैं। उनकी संख्या भी पहले बतला दी गई है। जव नया मन्दिर तय्यार हो तब उसमें शीघ्र ही प्रतिमा पधरा देना चाहिए। इसलिए हरिभद्रसूरि महाराज ने कहा है कि जिनभवने जिनबिम्ब, कारयितव्यां द्रुतंतु बुद्धि मता। - साधिष्ठानं बवं, तद्भवनं वृद्धिमद्भवति ॥१॥ जिनभुवम में बुद्धिमान मनुष्य को जिनबिम्ब सत्वर ही बिठा देना चाहिए। इस प्रकार अधिष्ठान सहित होनेसे मन्दिर वृद्धिकारी होता है। . नवीन मन्दिर में तांबा, कुंडी, कलश, ओरसिया, दीवट, वगैरह सर्व प्रकार के उपकरण, यथाशक्ति भंडार, देव पूजाके लिए वाड़ी ( बगीचा ) वगैरह युक्कि पूर्वक करना। यदि राजाने नवीन मन्दिर बनवाया हो तो भण्डार में प्रचुर द्रव्य डालना, मन्दिर खाते गांव, गोकुल वगैरह देना जैसे कि श्री गिरनार के खर्चके लिए मालवा देश निवासी जाफूड़ी प्रधान ने पहले के काष्ट मय मन्दिर के स्थानमें पाषाण मय मन्दिर बनाना शुरू किया। परन्तु दुर्दैवसे वह स्वर्गवासी हुआ। फिर एक रायतव्या द्रुतंतु बुद्धि पता। ५४
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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