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________________ श्राद्धविधि प्रकरण लघुनीति और बड़ी नीति करके वोसरावे और फिर पीछे आकर इर्यावही करके गमनागमन की आलोचना करे । कमसे कम तीन गाथाओंकी सझाय करके नवकार का स्मरण करते हुये पूर्ववत् शयन करे। पिछली रात्रिमें जागृत होकर इर्यावहि पूर्वक कुसुमिण दुसुमिण का कौसग्ग करे। चैत्य बंदन करके आचार्यादिक चारको वन्दना देकर भरहेसर की समझाय पढे। जब तक प्रतिक्रमण का समय हो तब तक समझाय करके यदि पोषध पारनेकी इच्छा हो तो खमासमण पूर्वक "इच्छा कारेण संदिसह भगवन् मुहपत्ति पडिलेह, गुरु फर्माये कि "पढिलेह" फिर मुहपत्ति पडिलेह कर खमासमण पूर्वक कहे कि “इच्छाकारेण संदिसह भग वन् पोसह पारु" गुरु कहे कि "पुणोवि कायव्यो” फिर भी करना । दूसरा खमासमण देकर कहे कि 'पोसह पारिश" गुरु कहे 'पायरो न मुक्तयो' आदर न छोड़ना, फिर खड़ा होकर नवकार पढ़कर गोड़ोंके बल वैठ कर भूमि पर मस्तक स्थापन करके निम्न लिखे मुजब गाथा पढे। सागर चन्दो कामो, चन्द व डिसो सुदंसणो धन्नो। जेसि पोसह पडिमा, अखंडिया जीविअन्ते वि ॥१॥ सागरचन्द्र श्रावक, कामदेव श्रावक, चन्द्रावतंसक राजा, सुदर्शन सेठ इतने व्यक्तिओंको धन्य है कि जिन्होंकी पौषध प्रतिमा जोवितका अन्त होने तक भी अखंड रही। धन्ना सलाह णिज्जा, सुलसा आणंद कामदेवाय ॥ सिं पसंसइ भयवं, दढयं यंतं महाबीरो॥२॥ वे धन्य हैं, प्रशंसाके योग्य है, सुलसा श्राविका, आनंद, कामदेव श्रावक कि जिनके दृढव्रतको प्रशंसा मगवंत महाबीर स्वामी करते थे। पोसह विधिसे लिया, विधिसे पाला, विधि करते हुये जो कुछ अविधि, खंडन, विराधना मन वचन कायसे हुई हो 'तस्स पिच्छामि दुक्कड़' वह पाप दूर होवो। इसी प्रकार सामायिक भी पारना, परन्तु उसमें निम्न लिखे मूजिब बिशेष समझना। ___सामाइय वयजुत्तो, जावमणे होइ नियम संजुत्तो॥ छिनइ असुई कम्मं सामाइन जत्ति आवारा ॥१॥ सामायिक व्रतयुक्त नियम संयुक्त जब तक मन नियम संयुक्त है तब तक जितनी देर सामायिक में है उतनी देर अशुभ कर्मको नाश करता है। छउमथ्यो मूह मणो, कित्तीय मित्तंच संभरह जीयो। ___जंच न समरामि अहं, मिच्छामि दुक्कणं तस्स ॥१॥ - छमस्थ हूं, मूर्ख मनवाला हूं, कितनीक देर मात्र मुझे उपयोग रहे, कितनीक बार याद रहे जो मैं याद न रखता हूं उसका मुझे मिच्छामि दुद्धड़ हो-पाप दूर होवो। . सामाइन पोसह सण्ठिठयस्स, जीवस्स जाइ जो कालो॥ . सो सफलो बोधव्यो, सेसो संसार फलहउ ॥३॥
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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