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________________ ३८२ श्राविधि प्रकरण पर्वकी महिमासे पर्वके दिन धर्म रहित हो उसे धर्ममें, निर्दयीको भी दयामे, अविरति को भी व्रतमें, कृपणको भी धन खर्चनेमें, कुशीलको भी शील पालनेमें तप रहितको भी तप करनेमें उत्साह बढ़ता है। बर्तमान कालमें भी तमाम दर्शनोंमें ऐसा ही देखा जाता है। कहा है कि:सो जयउ जेण विहिया । सर्वच्छर चउमासि असु पव्वा। निबंधसाणवि हबई। जेसिं पभावा पा धम्ममई ॥१॥ जिसमें निर्दयी पुरुषोंको भी पर्वके महिमासे धर्मबुद्धि उत्पन्न होती है, वैसे संवत्सरीय, चडमासी पर्व सदैव जयवन्ते बौ। इसलिये पर्वके दिन अवश्य ही पौषध करना चाहिये। उसमें पोषधके चार प्रकार हैं। वे हमारी की हुई अर्थ दीपिकामें कहे गये हैं इस लिये यहां पर नहीं लिखे। तथा पोषधके तीन प्रकार भी हैं। १ दिन रातका, २ दिनका और ३ रात्रिका । उसमें दिन रातके पौषधका विधि इस प्रकार है। "अहोरात्र पौषध विधि" - "करेपि भते पोसह पाहार पोसह समयो देसमोवा। सरीर सकार पोसह सन्मयो। बंभचेर पोसहं सबो अम्बावार पोसदं सव्वाअो। चउबिहे पोसहे ठाएपि। जाव अहो रत्त पज्जु वासामि । दुविहं तिविहेणं । मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि। तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणां वोसिरामि। जिस दिन श्रावकको पोषह लेना हो उस दिन गृह व्यापार बर्जकर पौषधके योग्य उपकरण (चर्वला मुंहपत्ति, कटासना, ) लेकर पोषधशाला में या मुनिराजके पास जाय। फिर अंग प्रति लेखना करके लघु. नीति एवं बड़ी न ति करनेके लिये थंडिल-शुद्ध भूमि तलाश करके गुरुके समीप या नवकार पूर्वक स्थापनाचार्यको स्थापन करके ईर्यावहि करके खमासमण पूर्वक वन्दना करके पौषधकी मुहपत्ति पडिलेहे। फिर खमास. मण देकर खड़ा हो 'इक्छाकारेण संदिस्सह भगवन पोषहसंदिसाहु' (दूसरी दफा) 'इच्छाकारेण संदि. स्सह भगवन पोषह ठाऊ' ऐसा कहकर नवकार गिनने पूर्वक पोसह दंडक निम्न लिखे मुजब उचरे । इस प्रकार पोषहका प्रत्याख्यान लेकर मुंहपति पडिलेहन पूर्वक दो खमासमण से 'सामायकसंदिसाऊ' "सामायक ठाऊ" यों कह कर सामायिक करके फिर दो खमासमण देने पूर्वक "बेसणे सदिसा" "वेसणेगऊ” यों कह कर यदि वर्षाऋतुके दिन हों तो काष्ठके आसनको और चातुर्मास बिना शेष आठ मासके समयमें प्रोंच्छणको, आदेश मांगकर दो खमासमण देने पूर्वक "सज्झायस दिसाऊ" "सज्झाय. ठाऊ" ऐसा कहकर सम्झाय करे। फिर प्रतिक्रमण करके दो खमासमण देने पूर्वक "बहुवेल सदि. साहु "बहुवेल करूं" ऐसा कहकर खमासमण पूर्वक “पडिलेहणा करू” ऐसा कहकर मुहपत्ति, कटा. सना, और वस्त्रकी पडिलेहन करे । श्राविका भी मुहपत्ति कटासना, साड़ी, चोली, वणिया ( लंहगा या घागरी) बमैरहकी पडिलेहन करे। फिर खमासकण देकर "इच्छकारी भगवन पडिले.
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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