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________________ श्राद्धविधि.प्रकरण ३६५ वन करे। एकसे लेकर कम करे, यावत् उनतीस तक, ऐसा करते हुये सामर्थ्य न ऐसा चिंतन करे । यावत पंचमासी तपकी भी शक्ति नहीं। उसमें भी एक एक कम करते हुये, यावत् चार मास तक आवे। एवं एक एक कम करते हुये तीन मास तक आवे। इसी तरह दो माल तक अन्तमें एक मास तपकी भी शक्ति नहीं यह चितवन करे। उस एक मासको भी तेरह दिन कम करते हुये चौंतीस भक्त वगैरह एक एक कम करते हुये यावत् चौथ भक्त तक याने एक उपवास तक आवे। वहांसे विचारना करते हुये 'आयंबिल' एकासन, अवढ, आदि यावत् पोरसी एवं नवकारसी तक आवे। जैसा तप करनेकी शक्ति और भाव हो वैसी धारना करके काउस्सग पूर्ण करे। फिर मुंहपत्ति पडिलेह कर दो बन्दना दे, और जो तप धारण किया हो उसका प्रत्याख्यान करे। इच्छामो अणुसठ्ठी' यों कह कर नीचे बैठ कर 'विशाल लोचन दल' ये तीन स्तुतियां कोमल शब्दसे पढे, फिर नमुत्थुणं कह कर देववन्दन करे। पाक्षिक प्रतिक्रमण का विधान इस प्रकार है चतुर्दशी के दिन पाक्षिक प्रतिक्रमण करना हो तब प्रथमसे बन्दिता सूत्र तक देवसिक प्रतिक्रमण करे। फिर अनुक्रम से इस प्रकार करे-मुंहपत्ति पडिलेह कर दो बन्दना दे, संबुद्धा, खामणा, खमा कर, फिर पाक्षिक अतिचार आलोवे, फिर बन्दना देकर प्रत्येक खामणा खमावे, फिर वन्दना देकर पख्खिसूत्र पढे । वन्दिता कह कर खड़ा होकर कायोत्सर्ग करे, फिर मुँहपत्ति पडलेह कर दो बन्दना दे, फिर समाप्त खामणेणं कह कर चार छोभ बन्दनासे पाक्षिक क्षमापना करे। शेष पूर्ववत याने देवसि प्रतिक्रमणवत करे, इतना विशेष समझना कि भुवन देवताका काउसग्ग करना और स्तवन की जगह अजित शांति पढना। इसी प्रकार तातुर्मासिक एवं वार्षिक प्रतिक्रमण का विधि समझना। पाक्षिक, चातुर्मासिक, और वार्षिक, प्रतिक्रमण में नामान्तर करना ही विशेष है, एवं कायोत्सर्ग में पाक्षिक प्रतिक्रमण में बारह लोगस्स का, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में वीस लोगस्ल का, वार्षिक प्रतिक्रमण में एक नवकार सहित चालीस लोगस्स का ध्यान करना। 'संबुद्धाणं' खामणामें पाक्षिक प्रतिक्रमण में पांच साधुओंको, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में सात साधुओंको, और वार्षिक प्रतिक्रमण में यथानुक्रम साधुओंको खमाना । हरिभद्रसूरिकृत आवश्यक वृत्तिके बन्दन नियुक्तिके अधिकारमें चत्तारिपडिक्कमणें इस गाथाके व्याख्यान में संबुद्धा खामणाके विषयमें उल्लेख किया है कि: जहन्नेणवितिन्नि । देवसिए पलिखबय पंच अवस्स। ___ चाउमासिय संवच्छरिए विसत्त अवस्स॥१॥ जघन्यसे देवसि प्रतिक्रमण में तीन, पाक्षिक प्रतिक्रमण में पांच, चातुर्मासिक और वार्षिक प्रतिक्रमण में, जघन्यसे सात साधुको अवश्य खमाना। परन्तु पाक्षिक सूत्र वृत्तिमें और प्रवचनसारोद्धार की वृत्तिमें कथन किये अनुसार वृद्धसमाचारी में भी ऐसा ही कहा है। प्रतिक्रमण के अनुक्रमण की भावना (विचारना) पूज्य श्री जयचन्द्रसूरिकृत प्रतिक्रमण हेतुगर्भ ग्रंथसे जान लेना। गुरुकी विश्रामना से बड़ा लाभ होता है सो बतलाते हैं।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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