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________________ ३०८ श्राद्धविधि प्रकरण कायस्थे स्नेह वद्धाशः क्रूरे मन्त्रिणि निर्भयः ॥१०॥ ३३ लोभी राजाके पाससे धन प्राप्त करनेकी आशा रख्खे । ३४ न्यायार्थी दुष्ट पुरुषोंकी सलाह माने । ३५ कायस्थ-राज कार्य कर्ताके साथ स्नेह रखनेकी इच्छा करे । ३६ निर्दय दीवान होने पर निर्भय रहे। कृतघ्ने प्रतिकारार्थी, नीरसे गुण विक्रयी॥ __ स्वास्थ्ये वैद्यक्रियाशोषी, रोगी पथ्यपराङ्मुखः ॥११॥ ३७ कृतघ्न मालूम हुये बाद गुण करके उपकार इच्छे। ३८ गुणके जानकार को गुण दे । ३६ निरोगी होते हुये भी दवा खाय। ४० रोगी होते हुये भी पथ्य न रख्खे । लोभेन स्वजनत्यागी, वाचा मित्रविरागकृत ॥ लाभकाले कृतालस्यो, महर्द्धिः कलहप्रियः॥१२॥ ४१ लोभसे-खर्च होनेके भयसे सगोंका सम्बन्ध त्याग दे। ४२ मित्रका न्यूनाधिक बचन सुनकर मित्रता छोड़ दे। ४३ लाभ होनेके समय आलस्य रक्खे। ४४ धनवान होकर कलहप्रिय हो। ___ राज्यार्थी गणकस्योक्त्वा, मूर्खमंत्र कृतादरा॥ शूरो दुबैलबाधायां, दृष्टदोषांगनारतिः॥१३॥ ४८ ज्योतिषी के कहनेसे राज्यकी अभिलाषा रख्खे। ४६ मूर्खके विचार पर आदर रखे । ४७.दुर्बल पुरुषोंको पीड़ा देने में शूरवीर हो । ४८ एक दफा स्त्रीके दोष-अपलक्षण देखनेके बाद उस पर आसक्त रहे। क्षणरागी गुणाभ्यासे, संचयेऽन्यः कृतव्ययः॥ नृपानुकारी मौनने, जने राजादिनिन्दकः ॥ १४ ॥ ४६ गुणके अभ्यास पर क्षणवार राग रख्खे। शिक्षण प्रारंभ किये बाद उसे पूर्ण किये विना ही छोड़ दे, वह क्षणरागी कहलाता है। ५० दूसरेकी कमाईका व्यय करे। ५१ राजाके समान मौन धारण कर बैठे रहे । ५२ और दूसरे लोगोंमें राजादिकी निन्दा करे। दुःखे दर्शितदैन्यातिः, सुखे विस्मृत दुर्गतिः ॥ बहुव्ययोऽल्परक्षाय, परीक्षाय विषाशिनः ॥ १५॥ ५३ दुःख आ पड़ने पर दीन होकर चिन्ता करे। ५४ सुख पाये बाद पहले दुःखको भूल जाय । ५५ थोड़े कामके लिये अधिक खर्च करे। ५६ परीक्षा करनेके लिये विष खाय । (विष खानेसे क्या होता है यह जानने के लिये उसे भक्षण करे) दग्धार्थो धातुवादेन, रसायनरसः क्षयी॥ आत्मसंभाववास्तब्धः क्रोधादात्मवधोधतः॥१६॥ ५७ सोना चांदी बनता है या नहीं इस भावनासे याने कीमिया बनानेकी क्रियामें अपने द्रव्यको खर्च डाले। ५८ रसायने खाकर अपनी धातुका क्षय करे। ५६ अपने मनसे अहंकारी होकर दूसरेको न नमे। ६० क्रोधावेशमें आत्मघात करे।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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