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________________ २५८ श्रादविधि प्रकरण जिस प्रकार तारे, नक्षत्र, अपने पर चन्द्रसूर्यको अधिकारी नायक तरोके रखते हैं वैसे ही द्रव्य उपा. र्जन करने और उसका रक्षण करनेकी सिद्धिके लिये हर एक मनुष्यको अपने ऊपर कोई एक राजा, दीवान या नगर सेठ वगैरह स्वामी जरूर रखना चाहिये, जिससे पद २ में आ पड़नेवाली आपत्तियों में उसके आश्रय से उसे कोई भी विशेष सन्तापित न कर सके। कहा है कि-"महापुरुष राजाका आश्रय करते हैं तो केवल अपना पेट भरनेके लिए नहीं परन्तु सज्जन पुरुषोंका उपकार और दुर्जनोंका तिरस्कार करनेके लिए ही करते हैं। वस्तुपाल तेजपाल दीवान, पेथडशाह, वगैरह बड़े सत्पुरुषोंने भी राजाका आश्रय लेकर ही वैसे बड़े प्रासाद और कितनी एक तीर्थयात्रा, संघयात्रा, वगैरह धर्म करनियाँ करके और कराकर उनसे होने वाले कितने एक प्रकारके पुण्य कार्य किये हैं। बड़े पुरुषोंका आश्रय किये विना वैसे बड़े कार्य नहीं किये जा सकते ! और कदाचित् करे तो कितने एक प्रकारकी मुसीबतें भोगनी पड़ती हैं। "कसम न खाना" जैसे तैसे ही या चाहे जिलकी कसम न खानी चाहिये। तथा उसम भी विशेषतः देव, गुरु, धर्मकी कसम तो कदापि न खाना। कहा है कि-सवाईसे या झूठतया जो प्रभुको कसम खाता है वह मूर्ख प्राणी आगामी भवमें स्वयं अपने बोधिबीज को गंवाता है और अनन्त संसारी बनता है। तथा किसीकी ओरसे गवाही देकर कष्टमें कदापि न पड़ना। इसलिये कार्यासिक नामा ऋषि द्वारा किये हुए नीति शास्त्रमें कहा है कि स्वयं दरिद्री होने पर दो स्त्रियां करना, मार्गमें खेत करना, दो हिस्सेदार होकर खेत बोना, सहज सी बातमें किसीको शत्रु बनाना, और दूसरेकी गवाही देना ये पांचो अपने आप किये हुए अनर्थ अपनेको ही दुःखदायी होते हैं। विशेषतः श्रावकको जिस गांवमं रहना हो उसी गांवमें व्यापार करना योग्य है, क्योंकि वैसा करनेसे कुटुम्बका वियोग सहन नहीं करना पड़ता। घरके या धर्मादिक के कार्यमें किसी प्रकारकी त्रुटि नहीं आ सकती, इत्यादि अनेक गुणोंकी प्राप्ति होती है। तथापि यदि अपने गांवमें व्यापार करनेसे निर्वाह न हो सके तो अपने ही देशमें किसी नजदीक के गांव या शहरमें व्यापार करना; क्योंकि ऐसा करनेसे जब जब काम पड़े तब शीघ्र गमनागमन वगैरह हो सकनेसे प्रायः पूर्वोक्त गुणोंका लाभ मिल सकता है। ऐसा कौन मूर्ख है कि जो अपने गांवमें सुखपूर्वक निर्वाह होते हुए भी ग्रोमान्तर की चेष्टा करे। कहा है कि-दरिद्री, रोगी, मूर्ख, प्रवासी-प्रदेशमें जा रहने वाला और सदवका नौकर इन पांचोंको जीते हुए भी मृतक समान गिना जाता है। कदाचित अपने देशमें निर्वाह न होनेसे परदेशमें ब्यापार करनेकी आवश्यकता पड़े तथापि वहां स्वयं या अपने पुत्रादि को न भेजे परन्तु किसी परीक्षा किये हुये विश्वासपात्र नौकरको भेज कर व्यापार करावे और यदि वहां पर स्वयं गये बिना न चल सके तो स्वयं जाय परन्तु शुभ शकुन मुहूर्त शकुन निमित्त, देव, गुरु, वन्दनादिक मंगल कृत्य करने आदि विधिसे तथा अन्य किसी वैसे ही भाग्यशाली के समुदाय की या
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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