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________________ २५६ श्राद्धविधि प्रकरणं ____यदि किसीके पास गुप्त धरोहर रक्खी हो तो वह वहां ही पच जाती है। तथा वैसे द्रव्य पर किसका मन नहीं ललचाता ? कहा है कि किसी शेठके घर कोई मनुष्य धरोहर रखने आया, उस वक्त शेठका घर गिरने लगा, तब उसने अपनी गोत्र देवीसे कहा कि हे देवि! यदि इस धनका स्वामी यहां ही मर जाय तो तू जो मांगेगी सो दूंगा ( ऐसे विचार आये बिना नहीं रहते )। इसलिए द्रव्यको बड़ी युक्ति पूर्वफ सम्हाल रखना चाहिये। "विना साक्षी धरोहर धरनेका दृष्टान्त" __कोई एक धनेश्वर नामक शेठ अपने घरमें जो २ सार वस्तु थीं उन्हें बेच कर उनके करोड़ २ मूल्य वाले आठ रत्न ले कर अपने स्त्री पुत्र वगैरह से भी गुप्त मित्रके घर धरोहर रख कर द्रव्य उपार्जन करनेके लिये परदेश चला गया। वहां कितने एक समय तक व्यापारादि करके कितना एक द्रव्य उपार्जन किया परन्तु दैवयोग वह अकस्मात् वहीं बीमार हो गया। इसलिए कहा है कि मचकुन्दके पुष्प समान स्वच्छ और उज्वल हृदयसे हर्ष सहित कुछ अन्य ही विचार करके कार्य प्रारम्भ किया हो परन्तु कर्मवशात् वही कार्य किसी अन्य ही आवेशमें परिणत हो जाता है। जब शेठको अन्तिम अवस्था आ लगी तब उसके साथ रहे हुये सज्जन प्रमुखने पूछा कि यदि कुछ कहना हो तो कह दो क्योंकि अब कुछ मनमें रखने जैसी तुम्हारी अवस्था नहीं हैं । उसने कहा कि जो यहांपर द्रव्य है सो दूकानके बही खातेको पढ़कर निश्चित कर मेरे पुत्रादिक को तगादा करके दिला देना, और मेरे अमुक गांवमें मेरे स्त्री पुत्रादिकसे भी गुप्त अमुक मित्रके पास एक एक करोड़के आठ रत्न धरोहर तया रख्खे हैं, वे मेरे स्त्री पुत्रको दिलाना। उन्होंने पूछा कि उस द्रव्यके रखनेमें कोई साक्षी या गवाह या कुछ निशानी प्रमाण है ? उसने कहा गवाह, साक्षी या निशानी पुराव कुछ नहीं। इसके बाद वह मरण की शरण हुआ। सज्जन लोगों ने उसके पुत्रादिको मरणादिक वृत्तान्त सूचित कर उसका वहांका सर्व धन तगादा वगैरहसे वसूल करके उसके पुत्रको दिलाया। फिर जिसके वहां धरोहर तया आठ रत्न रख्खे थे उसकी लिखत पढ़त कागज पत्र कुछ भी न होनेसे प्रथम तो उससे विनय बहुमान से मांगनी की, फिर राजा आदिका भय दिखला कर मांगा परन्तु उसके लोभीष्ट मित्रने ना तो धन दिया और न ही मंजूर किया। साक्षी गवाह आदि कुछ प्रमाण न होनेके कारण राजा आदिके पास जाकर भी वे उस धनको प्राप्त न कर सके। इसलिये किसीके पास कदापि बिना साक्षी धरोहर वगैरह द्रव्य न रखना। ... जैसे तैसे मनुष्यको भी साक्षी किया हो तथापि यदि वह वस्तु कहीं दब गई हो तो कभी न कभी वापिस मिल सकती है। जैसे कि कोई एक ब्यापारी तगादा वसूल कर धन लेकर कहींसे अपने गांव आ रहा था। मार्गमें चोर मिल गये उन्होंने उसे जुहार करके उससे धन मांगा तब वह कहने लगा कि किसी को साक्षी रख कर यह सब धन ले जावो। जब तुम्हें कहींसे धन मिले तब मुझे वापिस देना परन्तु इस वक्त मुझे मारना नहीं। चोरोंने मनमें विचार किया कि यह कोई मुग्ध है, इससे जङ्गलमें फिरते हुये एक
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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