SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ श्राद्धविधि प्रकरशा साथ अनुकूल और सत्य बोलना, सत्य बोलनेसे पुरुषकी उत्कृष्ट प्रतिष्ठा बढ़ती है और इसीसे जगतमें अपने ऊपर विश्वास बैठाया जा सकता है। विश्वास बैठानेसे मनवांच्छित कार्य होता है। "सत्य पर महणसिंहका दृष्टान्त" सुना जाता है कि दिल्लीमें महणसिंह ( मदनसिंह ) नामक एक शेठ रहता था। वह बड़ा सत्यवादी है उसकी ऐसी प्रख्याति सुन कर उसकी परीक्षा करनेके लिए बादशाह ने उसे अपने पास बुला कर पूछातेरे पास कितना धन है ? उसने कहा कि बही देख कर कहूंगा। उसने अपने घर आ कर तमाम बही खाता देख कर निश्चित करके बादशाह के पास जा कर कहा है कि मेरे पास अनुमान से ८४ लाख टके मालूम होते हैं; बादशाह विचार करने लगा कि, मैंने तो इससे कम सुना था परन्तु इसने तो सचमुच ही हिसाब करके जितना है उतना ही बतलाया। उसे सत्यवक्ता समझ कर बादशाह ने अब अपना खजानची बनाया। "सत्य बोलने पर भीम सोनीका दृष्टान्त" । खंभात नगरमें विपद् दशामें आ पड़ने पर भी सत्यवादी तपागच्छीय पूज्य श्री जगद्वन्द्र सरिका भक्त भीम नामक सुनार श्री मलिनाथ स्वामीके मन्दिर में दर्शन करने गया था, उस वक्त वहां पर हाथमें हथियार ले कर आ पड़े हुये क्षत्रियोंने उसे पकड़ कर धन मांगा। तब उसने कहा कि तुम्हें चार हजार धन द्वेकर ही भोजन करूंगा । फिर उसने पुत्रके पास धन मांगा; पुत्रोंने अपने पिताको छुड़ानेके लिये चार हजार खोटे रुपये ला दिये । क्षत्री लोगोंने वह धन ले कर भीमसे पूछा कि यह सच्चे रुपये हैं या खोटे ? उसने परीक्षा करके कहा कि-खोटे हैं। इससे उन लोगोंने प्रसन्न हो कर उसे माल सहित छोड़ दिया। फिर वे क्षत्रिय लोक उसी दिन उस गांवके राजवगीय यवनोंसे मारे गये। तुम्हें धन दिये बाद ही भोजन करूगा भीमने ऐसी प्रतिज्ञा की होनेके कारण उन्हें अग्नि संस्कार अपने हाथसे करके कबूल किए हुए चार हजार रुपये व्याज पर रख दिये। उस व्याजमें से उनकी वार्षिक तिथिको बड़ी पूजा श्री मल्लिनाथ के मन्दिर में आज तक होती है और उसमें से जो धन बढ़े वह उसी मन्दिर में खर्वा जाता है। मित्र करनेके लिए उसकी योग्यता देखना जरूरी है। समान धन प्रतिष्ठादि गुणवन्त निर्लोभी, एक मित्र जरूर करना चाहिये, जिससे सुख दुःखादि कार्यमें सहाय कारक हो। इसलिए रघुवंश काव्यमें भी कहा है कि 'जातिसे, बलसे, बुद्धिसे, और पराक्रमसे हीन लोगोंको यदि मित्र किया हो तो वे वक्त पर उपकार करनेके लिए समर्थ नहीं हो सकते और यदि जातिसे, बलसे, बुद्भिसे और पराक्रम से अधिक हों तो वे सच. मुच ही वक्त पर सामना कर बैठनेका सम्भव है। इसलिए राजाको समान जाति, बल, बुद्धि और पराक्रम वालोंके साथ मित्रता रखनी चाहिये । दूसरे शास्त्रमें भी कहा है कि, वैसी ही किसी विषम अवस्था के समय जहां भाई, पिता या अन्य कोई सगे सम्बन्धी भी खड़े न रह सकें वैसी आपदाको दूर करनेके समय भी मित्र सहाय करता है; रामचन्द्रजी लक्ष्मणजी से कहते हैं कि-'हे भाई ! अपनेसे विशेष संपदा वालेके साथ
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy