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________________ २४४ श्राद्धविधि प्रकरण लगी कि इतना वृद्ध हुवा तथापि कुछ लजा शर्म है ? जो बाल विधवाके द्रव्य पर बुरी दानत कर बैठा है। देखो तो सही यह मा भी कुछ नहीं बोलती और भाईने तो बिलकुल ही मौन धारा है ! ये सब दूसरेके द्रव्यके लालच बन बैठे हैं। मुझे क्या खबर थी कि ये इतने लालच और दसरेका धन दवाने वाले होंगे, नहीं नहीं ऐसा कदापि न हो सकेगा। क्या बाल विधवाका द्रव्य खाते हुए लजा नहीं आती! मेरा रुपया अवश्य ही वापिस देना पड़ेगा। किस लिए इतने मनुष्योंमें हास्य-पात्र बनते हो ? विवक्षणाके बचन सुन कर विचारा शेठ तो आश्चर्य चकित हो शरमिन्दा बन गया, और सब लोग उसे फटकार देने लग गये। इस बनावसे शेठके होस हवास उड़ गये। लोगोंकी फटकार स्त्रियोंके रोने कूटनेका करुण ध्वनि और लड़कीका विलाप इत्यादि से खिन्न हो शेठने विचार करके चार बड़े आदमियोंको बुलाकर पंचायत कराई। पंचायती लोगोंने विवक्षणा को बुलाकर पूछा कि तेरी हजार सुवर्ण मुद्रायें जो शेठके पास धरोहर हैं उसका कोई साक्षी या गवाह भी है ? वह बोली-“साक्षी या गवाहकी क्या बात ? इस घरके सभी साक्षी हैं। मा जानती है, बहनें जानतीं हैं, भाई भी जानता है, परन्तु हड़प करनेकी आशासे सब एक तरफ हो बैठे हैं, इसका क्या उपाय ? यों तो सब ही मनमें समझते हैं परन्तु पिताके सामने कौन बोले ? सबको मालूम होने पर भी इस समय मेरा कोई साक्षी या गबाह बने ऐसी आशा नहीं है। यदि तुम्हें दया आती हो तो मेरा धन वापिस दिलाओ नहीं तो मेरा परमेश्वर बेलि है । इसमें जो बनना होगा सो बनेगा। आप पंच लोग तो मेरे मां बापके समान हैं। जब उसकी दानत ही बिगड़ गई तब क्या किया जाय ? एक तो क्या परन्तु चाहे इक्कीस लंघन करने पड़ें तथापि मेरा द्रव्य मिले बिना मैं न तो खाऊंगी और न खाने दूंगी। देखती हूं अब क्या होता है" यों कह कर पंचोंके सिर भार डालकर विवक्षणा रोती हुई एक तरफ चली गयी। अब सब पंचोंने मिलकर यह बिचार किया कि सचमुच ही इस बेचारीका द्रव्य शेठने दबा लिया है, अन्यथा इस विवारीका इस प्रकारके कल कलाहट पूर्ण बचन निकल ही नहीं सकते। एक पंच बोला अरे शेठ इनना धीठ है कि इस बेचारो अबलाके द्रव्य पर भी दृष्टि डाली ! अन्तमें शेठको बुलाकर कहा कि इस लड़की का तुम्हारे पास जो द्रव्य है सो सत्य है, ऐसी बाल विधवा तथा पुत्री उसके द्रव्य पर तुम्हें इस प्रकारकी दानत करना योग्य नहीं। ये पंच तुम्हें कहते हैं कि उसका लेना हमें पंचोंके बीचमें ला दो या उसे देना कबूल करो और उस बाईको बुलाकर उसके समक्ष मंजूर करो कि हाँ ! तेरा द्रब्य मेरे पास हैं फिर दूसरी बात करना । हम कुछ तुम्हें फसाना नहीं चाहते परन्तु लड़कीका द्रव्य रखना सर्वथा अनुचित है, इसलिए अन्य विचार किये विना उसका धन ले आओ। ऐसे बचन सुनकर बिचारा शेठ लज्जासे लाचार बन गया और शरममें ही उठ कर हजार सुवर्ण मुद्राओंकी रकम लाकर उसने पंचोंको सोंपी। पंचोंने विलाप करती हुई बाईको बुलाकर वह रकम दे दी, और वे उठ कर रास्ते पड़े। इस बनावसे दूसरे लोगोंमें शेठकी बड़ी अपभ्राजना हुई। जिससे बिचारा शेठ बड़ा लजित हो गया और मनमें विचार करने लगा कि हा! हा! मेरे घरका यह कैसा फजीता! यह रांड ऐसी कहांसे निकली कि जिसने व्यथ ही मेरा फजीता किया और व्यर्थ ही द्रव्य ले लिया, इस प्रकार खेद करता हुवा शेठ घरके
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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