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________________ AAAAAnandna २३४ श्राद्धविधि प्रकरणे दिनोंमें जब मैं स्त्रीके साथ चन्द्रशालामें बैठा था तब मोहमें मग्न होनेसे प्रत्याख्यानकी विस्मृति हो जानेसे मैंने दारू पिया । परन्तु छतपर बैठ कर दारू पीनेके बर्तनमें दारू निकाले बाद उसमें ऊपर आकाशसे उड़ी जाती हुई चीलके मुखमें रहे हुए ओंधे मस्तक वाले सर्पके मुखसे गरल-विष पड़ा। सो मालूम न होनेसे मैंने दारू पीलिया। उससे विष धूमित होगया, परन्तु उसी वक्त प्रत्याख्यान भूल जानेकी याद आनेसे उस विषयमें पश्चात्ताप किया और शत्रुजय तथा पंच परमेष्ठीका ध्यान कर मृत्यु पा मैं एक लाख यक्षोंका अधि. पति कपर्दी नामक यक्ष हुवा हूं। स्वामिन् आपने मुझे नरक रूप कूपमें पड़ते हुएको बचाया है। आपने मुझ पर बड़ा उपकार किया है इसलिये मैं आपका सदैव सेवक रहूंगा। मेरे लायक जो कुछ काम काज हो सो फरमाना। यों कह कर हाथी पर चढ़ा हुवा अनेक यक्षोंके परिवार सहित सर्वाङ्ग भूषण धर, पास, अंकुश, विजोरा, रुद्राक्षणी माला एवं चार हाथोंमें चार वस्तुयें धारण करने वाला सुवर्ण वर्ण वाला वह कपर्दि नामक यक्ष श्री वज्रस्वामीके पास आ बैठा। तब श्रुतज्ञानके धारक श्री वज्र स्वामी भी जावड़ शेठके पास श्री शत्रुजयका सविस्तर महिमा व्याख्यान रूपसे सुनाते हुए कह गये। और फिर कहने लगे कि, हे महा भाग्यशाली जाण्ड ! तु श्री शत्रुजय तीर्थकी यात्रा और तीर्थका उद्धार निःशंक होकर कर। यदि इस कार्यमें कुछ विघ्न होगा तो ये सब यक्ष और मैं स्वयं भी सहायकारी हूं। गुरु देवके बचन सुनकर जावड बड़ा प्रसन्न हुधा और उन्हें बन्दना करके वहांसे उठकर अपने अठारह जहाज देखने चला गया। तमाम जहाजोंमें से तेजम तूरी (सुवर्ण रेति ) उतरवा ली और उसमसे सुवर्ण बनाकर बखारोंमें भर दिया। तदनंतर महोत्सव पूर्वक शुभ मुहूर्त में सर्व प्रकारकी तैयारियां करके श्री शत्रुजय तीर्थकी यात्रार्थ प्रस्थान किया । तब पहले ही दिन तीर्थके पूर्व अधिष्ठायक देवता जो दुष्ट बन गये थे उन्होंने जावड शाह और उनकी स्त्रीके शरीरमें ज्वर उत्पन्न किया। परन्तु श्री वन्न स्वामीकी दृष्टि मात्रके प्रभावसे उस ज्वरका उपद्रव दूर हो गया। जब उन दुष्ट देवता ओंने दूसरी दफा उपद्रव किया तब एक लाख यक्षोंके परिवार सहित आकर कपर्दी यक्षने विघ्न निवारण किया । दुष्ट देवताओंने फिर बृष्टिका उपद्रव किया। वह वज्रस्वामीने वायुके प्रयोगसे और महा वायुका पर्वत द्वारा, पर्वतका वन द्वारा हाथीका सिंहसे, सिंहका अष्टापदसे, अग्निका जलसे, जलका अग्निसे, और सर्पका गरुडसे निवारण किया । एवं मार्गमें जो २ उपद्रव होते गये सो सब श्री वन स्वामी और कपर्दी यक्ष द्वारा दूर किये गये। इस प्रकार विघ्न समूह निवारण करते हुए अनुक्रमसे आदिपुर नगरमें (सिद्धाचलसे पश्चिम दिशामें आदिपर नामक जो इस वक्त गांव है वहां ) आ पहुंचे। उस वक्त वे दुष्ट देवता प्रचंड वायु द्वारा चलायमान हुए वृक्षके समान पर्वतको कंपाने लगे, तब वज्र स्वामीने शांतिक कृत्य करके तीर्थ जल पुष्प अक्षत द्वारा मन्त्रोपचार से पर्वतको स्थिर किया। तदनन्तर वन स्वामीने बतलाये हुए मार्गसे भगवानकी प्रतिमाको आगे करके पीछे अनुक्रमसे गुरु महाराज और सकल संघ पर्वत पर चढ़ा । उस रास्तेमें भी कहीं कहीं वे अधम देवता शाकिनी, भूत, वैताल एवं राक्षस इत्यादिके उपद्रव करने लगे, परन्तु वज्र स्वामी और कपर्दीके निवारण करनेसे अन्तमें निर्विघ्नता पूर्वक वे मुख्य ढूंक पर पहुंच गये। वहां देखते हैं तो मांस, रुधिर, हड़ियां, चमड़ा, कलेवर, केस, खुर, नख, सींग, वगैरह दुगंछनीय वस्तुओंसे पर्वतको भरा देख तमाम
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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