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________________ maanwarAAAAAAAAAAAAmmonwr wwwAAAAAAAAAAAAAAA. श्रीद्धविधि प्रकरण २१७ राजाको भी प्रथमसे मैंने ही पूर्ण प्रसन्न किया हुवा है इस लिये अब यह मुझे किसी प्रकार भी हरकत न पहुंचायगा, ऐसे विचार रखकर किसी वक्त भी राजाको अवगणना न करना। क्योंकि राजाका विचार क्षण भरमें ही बदलते देर नहीं लगती, इससे न जाने वह किस समय क्या कर डाले । इस लिए हर वक्त स्वयं जागृत सावधान रहना श्रेयस्कर है। . यदि राजाकी तरफसे किसी कार्यवशात् सन्मान मिला हो तथापि अभिमान विल्कुल न रखना। क्योंकि नीतिमें कहा है कि, 'गव्योमूलविणासस्स' गर्व विनाशका मूल है । इस लिये गर्व करना योग्य नहीं। इस पर दृष्टान्त सुना जाता है कि, "दिल्लोमें एक राजमान्य दीवान था। उसने किसीके पास यह कहा था कि, मेरेसे ही राज्यका काम काज चलता है। यह बात मालूय हो जानेसे बादशाहने उसका वह अधिकार छीन कर उसके पास रहने वाले उसे चमार लोगोंका ऊपरी अधिकारी बनाया। और उससे सही सिक्केके लिए चमार लोगोंके रापी नामक शस्त्रके आकार जैसा रखनेमें आया । अन्तमें उसके नामकी यादगारी भी रापीके नामसे ही रखने में आई थी। इस लिए राजमान्य होने पर अभिमान रखना योग्य नहीं। उपरोक्त रीतिके अनुसार नौकरी करते हुए राज्यमान्य और ऐश्वर्यता प्रमुखका लाभ होना भी कुछ असम्भवित नहीं है, जिसके लिए कहा है कि,: इक्षक्षेत्र समुद्रश्च । योनिपोषणमेवच ॥ प्रासादो भूभुजां चैव । सद्यो घ्नन्ति दरिद्रतां ॥ इक्षु क्षेत्र, जहाजी व्यापार, घोड़ा, वगैरह पशुओंका पोषण, राजाकी मेहरवानी, इतने काम किसी न किसी समय करने वाले या प्राप्त करने वालेका दारिद्रय दूर कर डालते हैं। राजकीय सेवाकी श्रेष्ठता बतलाते हुये कहते हैं। निंदन्तु मानिनः सेवां । राजादीनां सुखैषिण ॥ स्वजनाऽस्वजनोद्धार । संहारौ न विना तया॥ निर्भय सुखकी इच्छा रखने वाले अभिमानी पुरुष कदापि राजा वगैरहकी सेवाकी निन्दा करें करने दो परन्तु वजन और दुर्जन पुरुषका क्रमसे उद्धार और संहार ये राजाकी सेवा किए बिना नहीं किये जा सकते। "राज सेवाके लाभ पर दृष्टान्त" एक समय कुमारपाल राजा अपने राज्यकी भीतरी परिस्थिति जाननेके लिये रात्रिके समय गुप्त वेशमें निकला था। उस समय प्रजा द्वारा की हुई प्रशंसासे इसने ही सच्ची राजकीय सेवा बजाई है ऐसे विचारसे राजाने एक वोशीर नामक विप्रको तुष्टमान हो लाट देशका राज्य दे दिया । इसी प्रकार जितशत्रु रोजाने अपने पुत्रको सर्पके भयसे वचाने वाले देवराज नामक रात्रिके चौकीदार को तुष्टमान होकर अपना राज्य दे दीक्षा लेकर मोक्ष पदकी प्राप्ति की।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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