SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१४ श्रादविधि प्रकरण बाप इसे दूर बुलाने जायगा। उसे जो कुछ कहा जाय सब सहन करके बैठ रहै तो मालिक कहेगा यह तो बिलकुल डरपोक है डरपोक, देखो तो सही जरा भो उत्तर नहीं दे सकता है ? यदि सामने जबाब देता है तो मालिक कहता है कि, देखो तो सही कुछ सहन कर सकता हैं ? कैसे सवाल जवाब करता है ? सचमुच जैसी जात हो वैसी हो भांत होनी है। इसलिए योगी पुरुषोंको भी सेवाधर्म बड़ा अगम्य है, क्योंकि, स्थूल बुद्धि वाला नहीं जान सकता इस समय उसके स्वामिका मन कैसा हैं। प्रणमात्युबतिहेतो। जीवितहेतो विमुचति प्राणान् ॥ दुःखोयति सुखदेतो। को मूर्खः सेवकादन्यः ॥२॥ मुझे मान मिलेगा या शेठ खुशी होंगे इस हेतुसे उठकर शेठको प्रणाम करता है, जीवन पयन्त नौकरी मिलेगी इस आशयसे अपने खामीके लिए या उसके कार्यके लिए कभी अपने प्राण भी खो देता है, मालिकको खुशी करनेके लिए उसकी तरफसे मिलने वाले अपार दुःख सहन करता है, इसलिए नोकरके बिना दूसरा ऐसा कौन मूर्ख है कि, जो ऐसे दुःसह काम करे। सेवाश्च वृत्ति यैरुक्ता। नतः सम्यगुदाहृतं ॥ श्वानः कुर्वति पुच्छेन । चाटुमु तु सेवकः ॥ ३॥ - दूसरेकी नोकरी करके आजीविका चलाना सो ठीक नहीं कहा, क्योंकि कुत्ते जैसे पशु भी अपने स्वामी को पूछ द्वारा प्रसन्न करते हैं, परन्तु नौकर तो मस्तक नमाकर स्वामीको प्रसन्न रखते हैं। (नौकरी कुत्तेसे भी हलकी गिनी जाती है:) इसलिये बने तब तक दूसरेकी नौकरी करके आजीविका करना योग्य नहीं। परन्तु यदि दूसरे किसी उपायसे आजीविका न चले तो फिर अन्तमें दूसरेको नौकरी करके भी निर्वाह चलाना । इसके लिये शास्त्रमें कहा है कि; घणवं तवाणिज्जेण । थोवधणोकरिसणेण निब्वहई ॥ सेवा विचिइपुणो । तुदे सयलंपि ववसाए ॥ धनवान् व्यापार करके, कम धन वाला खेती द्वारा, तथा अन्य कोई भी व्यवसाय न लगे तब दूसरेकी नौकरी करके निर्वाह करे। "स्वामी कैसा होना चाहिये।" विशेष जानकार, किये हुये गुणको जानने वाला, दूसरेको बात सुनकर एकदम न भड़क ने बाला, वगैरह २ गुण वाला हो उसी स्वामीके पास नौकरी करना कहा है। अर्थात् पूर्वोक गुणवान् स्वामीकी नौकरी करना योग्य है। प्रकाणं दुर्बलः शूरः। कृतज्ञः सात्विको गुणी॥ वादान्यो गुणरागी च । प्रभुः पुण्यै रवाप्यते ॥१॥ कानका कथा-दूसरेकी बात सुनकर एकदम भडक जाने वाला न हो, शूर वीर हो, किये हुए गुणका
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy