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________________ श्राद्धविधि प्रकरण "द्वादशावर्त वन्दन विधि" जिसने गुरुके पास प्रभातका प्रतिक्रमण न किया हो उसे प्रातःकाल गुरुके पास आकर विधि पूर्वक वंदना करनी चाहिए ऐसा भाष्यमें कहा है। प्रातःकाल में गुरुदेव के पास जा कर विधि पूर्वक द्वादशावर्त चन्दन करना चाहिये । द्रव्यके साथ भाव मिल जानेसे वन्दन द्वारा मनुष्य महा लाभ प्राप्त कर सकता है। इरिभाकुसुमिणुसग्गो। चिइ वन्दण पुत्ति वंदणालोमं॥ वंदण खामण वंदण । संवर चउ छोभ दुसमझाओ ॥१॥ प्रथम ईर्यावही करना, फिर कुसुमिण दुसुमिणका चार लोगस्सका काउसग्ग करना । फिर लोगस्स कह कर चैत्यवन्दन करके खमासमण देकर आदेश लेकर मुहपट्टी की प्रति लेखना करना, फिर दो वन्दना देना । फिर 'इच्छा कारण' कह कर आदेश मांग कर राइ आलोचना करना । फिर दो वंदना देना फिर 'अभु. ठियो' खमाना और दो वन्दना देना। फिर खड़ा होकर आदेश मांग कर प्रत्याख्यान करना । फिर चार खमासमण देकर भगवान आदि चारको चन्दन करना। इसके बाद खमासमण दे सज्झाय संदिसाऊ सज्झाय करू', ऐसा कह कर दो खमासनो दे सज्झाय कहना, (नवकार गिनना)। यह प्रभातका वन्दन विधि है। "मध्यान्ह हुये बाद द्वादशावर्त वन्दन करनेका विधि" इरिमा चिइ वंदण। पुति वंदणं चमर वंदणा लो॥ वंदण खामण चउ छोभ । दिवसुसग्गो दुसमझामो॥२॥ पहले ईर्यावही कह कर चैत्य वन्दन करके खमासमण'दे आदेश मांग कर मुख पत्तोकी पढिलेहण करना फिर दो बन्दना देना । फिर खमालमण दे आदेश मांग कर 'दिवस चरिम' प्रत्याख्यान करना । पुनः दो वंदना देना । 'इच्छा कारण' कह कर देवसि आलोचना करना। फिर दो बन्दना देना । खमासमण देकर 'अभुडियो' खमाना। फिर चार थोक बन्दन करके भगवान आदिक चारको बन्दन करना। तदनन्तर देवसिअ पायच्छित का काउस'ग करना । खमासमण देकर सम्झाय संदीसाऊ, सज्झाय करूं। यह संध्याका बन्दन विधि है। ___ "हरएक किसी वक्त गुरुको वन्दन करनेका विधि" जब गुरु किसी कार्यकी व्यग्रतामें हो तब द्वादशावर्त वन्दनसे नमस्कार न किया जाय ऐसा प्रसंग हो उस सयय थोम वंदना करके भी वन्दन किया जाता है । उपरोक्त रीतिके अनुसार गुरुको बन्दन करके श्रावकको प्रत्याख्यान करना चाहिये । कहा है कि - प्रत्याख्यानं यदासीच । करोति गुरु सात्तिकं॥ विशेषेणाथ गुहणति । धर्मोसौ गुरु सात्तिकः॥ पञ्चखाण करनेका जो वक्त है उस वक्तमें ही प्रत्याख्यान करना। परन्तु धर्म, गुरु साक्षिक होनेसे
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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