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________________ १८६ . श्राद्धविधि प्रकरणं ___ जो प्राणी अज्ञानपन से भी जिनेश्वर देवके पास किये हुए दीपकसे या धूप धानामें रहे हुये अग्निसे अपने घरका काम करता है वह मर कर प्रायः पशु होता है । इसी लिए देवके दीपकसे घरका पत्र तक न पढ़ना चाहिये, घरका काम भी न करना, रुपया भी न पर खना, दीपक भी न करना, देवके लिए घिसे हुए चन्दनसे अपने मस्तक पर तिलक भी न करना, देवके प्रक्षालन करनेके लिए भरे हुये कलशके पानीसे हाथ भी न धोना, देवकी शेषा (न्हवन ) भी नीचे पड़ा हुवा या पड़ता हुवा, स्वल्प मात्र ही लेना परन्तु प्रभुके शरीरसे अपने हाथसे उतार लेना योग्य नहीं, देव सम्बन्धी झालर वाद्य भी गुरुके पास या श्री संघके पास न बजाना । कितनेक आचार्य कहते हैं कि, पुष्टालम्बन हो ( जिन शासनकी विशेष उन्नतिका कारण हो ) तो देव सम्बन्धि झालर, वाद्य, यदि उसका नकरा प्रथमसे ही देना कबूल किया हो या दे दिया हो तो ही बजाया जा सकता है, अन्यथा नहीं, कहा है कि:-- मूलं विणा जिणोणं । उवगरणं छत्त चमर कलसाई ॥ जो वावरेइ मूढो। निय कज्जे सो हवई दुहिमो॥ जो मूढ़ प्राणी नकरा दिये बिना छत्र, चामर, कलश वगरह देव द्रव्य अपने गृह कार्यके लिए उपयोगमें लेता है वह परभव में अत्यन्त दुखी होता है। यदि नकरा देकर भी झालर वगैरह लाया हो और वह यदि फूट टूट जाय या कहीं खोई जाय तो उसका पैसा भर देना चाहिए। अपने गृह कार्यके लिए किया हुवा दीपक यदि मन्दिर जाते हुए प्रकाशके लिए साथ ले जाय तो वह देवके पास आया हुवा दिया देव द्रव्यमें नहीं गिना जा सकता। सिर्फ दीपक पूजाके लिए किया हुवा दीपक देव दीपक गिना जाता है। देव दीपक करनेके कोडिये, दीवट, गिलास, जुदे ही रखना योग्य है । कदापि साधारण के दीवट, कोडीये वगैरह में से यदि देवके लिए दीपक किया हो तो उसमें जब तक घी, तेल बलता हो तब तक श्राबकको अपने उपयोगमें नहीं लेना चाहिये । वह घी, तेल, बले बाद ही साधारण के काममें उपयोग में लेना। यदि किसीने पूजा करने वालेके हाथ पैर धोनेके लिए मन्दिरमें पानी भर रख्खा हो तो वह उपयोग में लेनेसे देव द्रव्यका उपभोग किया नहीं गिना जाता। ___कलश, छाब, रकेबी, ओरसिया, चन्दन केशर, बरास, कस्तूरी प्रमुख अपने द्रव्यसे लाया हुवा हो उससे पूजा करना, परन्तु मन्दिर सम्बन्धी पैसेसे लाये हुए पदार्थसे पूजा न करना । पूजा करनेके लिये लाये हुए पदार्थ इनसे सिर्फ पूजा ही करनी है यदि ऐसी कल्पना न की हो तो उसमेंसे अपने गृह कार्यमें भी उप. युक्त किया जा सकता है । झालर, वाद्य वगैरह सर्व उपकरण साधारण के द्रव्यसे मन्दिरमें रख्खे गये हों तो वेसब धर्म कृत्योमें उपयुक्त करने कल्पते हैं । अपने घरके लिए कराये हुए समियाना, परिचछ, पडदा, पाटला वगरह यदि कितनेक दिन मन्दिरके प्रयोजनार्थ वर्तनेको लिए हों तो उन्हें पीछे लेते देवद्रव्य नहीं गिना जाता क्योंकि देवद्रव्य में देनेके अभिप्रायसे ही दिया हुवा द्रव्य देवद्रव्य तया गिना जाता है परन्तु अन्य नहीं। यदि ऐसान हो तो अपने बर्तनमें नैवेद्य लाकर मन्दिर में रख्खा हो तो वह बरतन भी देवद्रव्यमें गिना जानेका प्रसंग भावे, परन्तु ऐसा नहीं है।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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