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________________ श्राद्धविधि प्रकरण १७७ मेरे जहाजमें बैठने पर भी वह न तो डूबा और न उसमें कुछ उपद्रव हुवा, या इस बक मुझे दैव भूल ही गया है ! जिस तरह आते समय दुर्दैवने मेरे सामने नहीं देखा यदि वैसे ही पीछे फि ते वक्त वह मेरे सामने दृष्टि न करे तो ठीक हो । इसी विचारमें उसे वहांपर बहुतसे दिन बीत गये। यद्यपि वहां पर कुछ उद्यम न करनेसे उसे कुछ अलभ्य लाभ नहीं हुवा, परन्तु उसके सुदैवसे वहांपर कुछ उपद्रव न हुवा उसके लिए यही एक बड़े भाग्यकी बात हैं। वह अपने निर्भाग्यपन की वार्ता कुछ भूल नहीं सकता, एवं उसे भी इस बातकी तसल्ली ही है कि आते समय तो मेरे सुदैवसे कुछ न हुवा परन्तु जाते वक्त परमात्मा ही खैर करें। उसे अपनी स्थितिके अनुसार पद पदमें अपने भाग्य पर अविश्वास रहता था, इससे वह विचार करता है कि, न बोलने में नव गुण हैं, यदि मैं यहां किसीसे अपने भाग्यशाली पनकी बात कहूंगा तो मुझे यहांसे कोई वापिस न ले जायगा इसलिये अपने नशीबकी बात किसी पर प्रकट करना ठीक नहीं, अब वह एक दिन पीछे आते हुए एक साहूकारके जहाजमें चढ़ बैठा, परन्तु उसके मनकी दहसत उसे खटक रही थी, मानो उसकी चिन्तासे ही वैसा न हुवा हो समुद्र के बीच जहाज फट गया। इससे सब समुद्रमें गिर पड़े। भाग्यशालियों के हाथमें तख्ते आजानेसे वे ज्यों त्यों कर बाहार निकले। निष्पुण्यको भी उसके नशीबसे एक तख्ता हाथ आ गया, उससे वह भी बड़ी मुष्किलसे समुद्र के किनारे आ लगा । वहांपर नजीकमें रहे किसो गांवमें वह एक जमीनदारके वहां नौकर रहा। उस दिन तो नहीं परन्तु दूसरे दिन अकस्मात वहांपर डांका पड़ा, जिसमें जमीनदार का तमाम माल लुट गया, इतना ही नहीं परन्तु उस डांकेके डाकू लोग उस निष्पुण्यकको भी जमीनदारका लड़का समझ उठा लेगये। जब वे जंगलमें उस धनको बांट रहे थे उस वक्त समाचार मिलनेसे उनके शत्रु दूसरे डांकुओंने उन पर धावा करके तमाम धन छीन लिया और वे जंगलमें भाग गये। इससे उन लुटेरोंने उस महाशय को भाग्यशाली समझ कर अर्थात् यह समझ कर कि इसकी कृपासे हमारा धन पीछे गया, उस निर्भाग्य शेखरको वहांसे भी बिदा किया। कहा है कि,: खल्वाटो दिवसेश्वरस्य किरणः संतापितो मस्तके ॥ वाञ्छन् स्थानमनातपं विधिवशाव तालस्य मूलंगतः॥ तत्राप्यस्य महाफलेन पतता भग्नं सशब्दं शिरः॥ मायो गच्छति यत्र दैवहतकस्तत्रैव यान्त्यापदः ॥ सूर्यके तापसे तपे हुये मस्तकवाला एक खल्वाट (गंजा) मनुष्य शरीरको ताप न लगे इस विचारसे एक बेलके पेड़के नीचे आखड़ा हुवा, परन्तु नशीब कमजोर होनेसे बेलके वृक्षपरसे उसके मस्तक पर सडाक शब्द करता हुवा एक बड़ा बेलफल आ पड़ा जिससे उसका मस्तक फूट गया। इसलिए कहा है कि, "पुण्य हीन मनुष्य जहां जाता है वहां आपदायें भी उसके साथ ही जाती हैं।" ___इस प्रकार नौ सौ निन्यानवे जगह वह जहां जहां गया वहां वहां प्रायः चोर, अग्नि, राजभय, परचक्र भय, मरकी वगैरह अनेक उपद्रव होनेसे धक्का मार कर निकाल देनेके कारण वह महादुख भोगता हुवा अन्तमें महा अटवीमें आये हुए महा महिमावन्त एक शेलक नामक यक्षके मन्दिरमें जाकर एकाग्र वित्तसे
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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