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________________ १६८ श्राद्धविधि प्रकरण तना हो क्योंकि लौकिक में भी निन्दा होती है कि, देखो यह कैसा धर्म है कि, जिसमें रोज पहरने के आभूषणों की भी मन्दिर जाते मनाई है । ५६ जिनप्रतिमा देखकर हाथ न जोड़ना, ५७ एक पनेहवाले उत्तम वस्त्रका उत्तरासन किये विना मन्दिर में जाना, ५८ मस्तक पर मुकुट बांध रखना, ५६ मस्तक पर मोली वेष्ठित रखना ( वस्त्र लपेट रखना ), ६० मस्तक पर पगड़ी वगैरह में रक्खा हुवा फल निकाल न डालना, ६१ मन्दिरमें सरत करना, जैसे कि एक मुट्ठीसे नारियल तोड़ डाले तो अमुक दूंगा । ६२ मन्दिरमें गेंद से खेलना, ६३ मन्दिरमें किसी भी बड़े आदमीको प्रणाम करना, ६४ मन्दिरमें जिससे लोक हसें, ऐसी किसी भी प्रकारकी भांड चेष्टा करना, ६५ किसीको तिरस्कार वचन बोलना, ६६ किसीके पास लेना हो उसे मन्दिरमें एकना अथवा मन्दिरमें लंघन कर उसके पाससे द्रव्य लेना, ६७ मन्दिरमें रणसंग्राम करना, ६८ मन्दिरमें केश संभारना, ६६ मंदिर पौथी लगाकर बैठना, ७० पैर साफ रखनेके लिये मन्दिरमें काष्टके खड़ाऊ पहरना, ७१ मन्दिरमें दूसरे लोगोंके सुभीते की अवगणना करके पैर पसारकर बैठना, ७२ शरीरके सुख निमित्त पैर दबवाना, ७३ हाथ, पैर धोनेके कारणसे मन्दिरमें बहुतसा पानी गिराकर जाने आनेके मार्ग में कीचड़ करना, ७४ धूल वाले पैरोंसे आकर मन्दिर में धूल झटकना, ७५ मन्दिर में मैथुनसेवा कामकेलि करना, ७६ मस्तक पर पहनी हुई पगड़ीमें से या कपड़ोंमें से खटमल, जूं बगैरह चुनकर मन्दिर में डालना, ७9 मन्दिर में बैठकर भोजन करना, ७८ गुह्यस्थानको बराबर ढके बिना ज्यों त्यों बेटकर लोगों को गुह्यस्थान दिखाना, तथा मन्दिर में दृष्टि युद्ध या वाहु युद्ध करना, ७६ मन्दिरमें बैठकर वैद्यक करना, ८० मन्दिरमें बेचना, खरीदना करना, ८१ मन्दिरमें शय्या करके सोना, ८२ मन्दिरमें पानी पीना या मन्दिरकी अगाशी अथवा परनालेसे पड़ते हुए पानीको ग्रहण करना, ८३ मन्दिर में स्नान करना, ८४ मन्दिर में स्थिति करना रहना । ये देवकी चौरासी उत्कृष्ट आशातनायें होती हैं। "वृहत् भाष्य में निम्नलिखी मात्र पांच ही आशातना बतलाई हैं ?" १ किसी भी प्रकार मन्दिर में अवज्ञा करना, २ पूजामें आदर न रखना, ३ देवद्रव्यका भोग करना, ४ दुष्ट प्रणिधान करना, ५ अनुचित प्रवृत्ति करना । एवं पांच प्रकारकी आसातना होती है । १ अवज्ञा आशातना - - पलौथी लगाकर बैठना, प्रभूको पीठ करना, पैर दबाना, पैर पसारना, प्रभूके सन्मुख दुष्ट आसन पर बैठना । · २ आदर न रखना, ( अनादर आशातना, जैसे तेसे वेषसे पूजा करना, जैसे तैसे समय पूजा करना 'चित्तसे 'पूजा करना । और शून्य ३ देवद्रव्यका भोग ( भोग आशातना) मन्दिर में पान खाना, जिससे अवश्य प्रभूको आशातना हुई कही जाय, क्योंकि ताम्बूल खाते हुए ज्ञानादिकके लाभका नाश हुवा इसलिये आशातना कही जाती है। ४ दुष्ट प्रणिधान आशातना - राग द्वेष मोहसे मनोवृत्ति मलीन हुई हो वैसे समय जो क्रिया की जाती है उस प्रकारकी पूजा करना । ५ अनुचित प्रवृत्ति आशातना - किलीपर धरना देना, संग्राम करना, रुदन करना, विकथा करना, पशु
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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