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________________ श्रादविधि प्रकरण बैठा कर यहां पर हरन कर लाया हूं। ऐसे भयंकर वनमें भी तू अपने नियमकी प्रतिज्ञासे भ्रष्ट न हुवा, इसीसे मैं बड़ी आश्चर्यता पूर्वक तुझ पर प्रसन्न हुवा हूं। इसलिए हे शिष्टमति ! तुझे जो इच्छा हो वह मांग ले । देवता द्वारा की हुई अपनी प्रशंसासे नीचा मुख करके और कुछ विचार करके कुमार कहने लगा कि जब मैं तुझे याद करू तब मेरे पास आकर जो मैं कहूं वह मेरा कार्य करना । देवता बोला हे अद्भुत भाग्यशाली! जो आपने मांगा सो मुझे सहर्ष प्रमाण है, क्योंकि तू अद्भुत भाग्यके निधान समान होनेसे मैं तेरे वशीभूत हू, इसलिये अब त याद करेगा तब मैं आकर अवश्य तेरा काम करूंगा, यों कह कर देवता अन्तर्धान हो गयो । अब धर्मइत्त राजकुमार इनमें विचारने लगा कि मुझे यहांपर हरन कर लानेवाला देव तो गया, अब मैं राजभुवनमें कैसे जा सकुंगा ? ऐसा विचार करते ही अकस्मात् वह अपने आपको अपने राजभुवन में ही खड़ा देखता है । इस दिखायसे वह विचारने लगा कि, सचमुच यह भो देवकृत्य ही हैं। इसके बाद राजकुमार अपने माता पिता एवं अपने परिवार परिजन, सगे सम्बन्धियोंसे मिला, इससे उन्हें भी बड़ी प्रसन्नता हुई। राजकुमार आज तीन दिनका उपाशी था और उसे आज अमका पारना करना था तथापि उसमें जरा मात्र उत्सुकता न रमाके सने अपनी जिनपूजा करमेका जो विधि था उसमें सम्पूर्ण उपयोग रखकर विधिपूर्वक यथाविधि शादि विधान किबे बाद पारना करके सुखसमाधि पूर्वक राजकुमार पहलेके समान सुख विलाससे अपना समय व्यतीत करने लगा। पदिक दिशामें राज करनेवाले चार राजाओंको बहुतसे पुत्रों पर वे चार मालीकी कन्यायें पुत्रीपने उत्या हुई। धर्मरति, धर्ममति, धर्मश्री, और धार्मिणि, ये चार नाम वाली वे कन्यायें साक्षात् लक्ष्मी के समान युवास्था के सन्मुख हो शोभने लगीं। वे चारों कन्यायें एक दिन कौतुक देखनेके निमित अवेक प्रकारके पुण्यसमुदाय के और महोत्सव के स्थानरूप जिनमन्दिरमें दर्शन करनेको आई । वहां प्रतिमाके दर्शन करते ही उन चारोंको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन होनेसे अपना पूर्वभव वृतान्त जानकर उन्होंने जिनपूजा दर्शन किये बिना मुखमें पानी तक भी न डालना ऐसा नियम धारण किया। अब वे परस्पर ऐसी ही प्रतिज्ञा करने लगी कि, अपने पूर्वभवका मिलापी, जब धना मित्र मिले सब उसीके साथ शादी करना, उसके बिना अन्य किसीके साथ शादी न करना। उनकी यह प्रतिज्ञा उनके माता पिताको मालूम होनेसे उन्होंने अफ्नो २ पुत्रीका छन करकेके लिये स्वयंकर मंडपकी रचना करके सब देशके राजकुमारों को आमंत्रण दिया। उसमें राज्य र समाको पुत्र सहित आमंत्रण किया गया था परन्तु धर्मराजकुमार वहां जानेके लिये तैयार न हुला और और उसया बों कहने लगा कि, ऐसे सन्देह वाले कार्यमें कौन बुद्धिमान् उद्यम करे ? ___अब अपने पिता विरगति विद्याधरके उपदेशसे दीक्षा लेनेको उत्सुक विचित्रगति क्यिाधर (वित्रगति विद्याधर साधुका पुत्र) विचारने लगा कि, इस मेरे राज्य और इकलौति पुत्रीका स्वामी कौन होगा ? इसलिए प्रातिविधाको बुलाकर पूछ देखू। फिर प्राप्ति विद्याका आव्हान कर, उसे पूछने लपाकि, "इस मेरी राज्य शनि और पुत्रीका स्वामी बोके पोम्ब कौन पुरुषरत्न है ?" वह बोली-"तेग दाज्य और पुत्रो इन दोनों को यार मालाके पुत्र धर्मदल कुमारको देना योग्य है। यह सुनकर प्रसन्न खे विचित्रगति विद्याधर धर्मदत्त
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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