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________________ अथ षोडशः साम्यसर्वस्वाधिकारः ब सम्पूर्ण ग्रन्थके दोहनरूप-एक प्रधानतत्त्व-साम्यसमता सर्वस्व ही है इस विषयपर उपसंहार करते ' संक्षिप्त विवेचन किया जाता है। इस सम्पूर्ण * प्रन्थका क्या उद्देश्य है, साध्यविन्दु क्या है, प्रयोजन क्या है, इन सबको अन्धकार बतलाते हैं। दूसरे रूपसे देखा जाय तो यह अधिकार प्रशस्ति जैसा है । समताके विषयमें यहां जो विचार बतलाये गये हैं वे संक्षिप्त किन्तु महत्त्वपूर्ण हैं। मनोनिग्रह, ममत्वत्याग और शुभवृत्ति ये सब समतामें परि'समाप्ति पाते हैं, इसलिये यह द्वार सर्व द्वारोंपर शिखर चढानेवाला है । समताके रहस्यको धारण करनेके लिये यहां दिग्दर्शन कसया गया है। समताका फल-माक्षसंपत्ति एवं सदाभ्यासवशेन सात्म्यं, नयस्व साम्यं परमार्थवदिन् । यतः करस्थाः शिवसंपदस्ते, भवन्ति सद्यो भवभीतिभेत्तुः ॥१॥ " हे साविक पदार्थके जाननेवाले ! इसप्रकार (ऊपर पन्द्रह द्वारोंमें कहे अनुसार) निरन्तर अभ्यासके योगसे समताको प्रात्माके सात जोड़ दे, जिससे भवके भयको भेदनेवाले तुझे मोक्षसम्पचिये एकदम हस्तनत हो सके ।" उपजाति,
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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