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________________ अधिकार] शुभवृत्तिशिक्षोपदेशः [६२९ भाषामें कहा जाय तो कर्मकी 'निर्जरा' करनी हो तो इसका यह उचित मार्ग है । हरसमय सात या आठ कर्म बान्धनेवाला जीव भोगते समय सब कर्मोंको विपाकोदय होनेपर ही भोगे ऐसा कोई नियम नहीं हैं, इसलिये यदि तपस्या कर आत्मप्रदेशसे भोगकर कर्मको नष्ट कर देवे तब ही इसके कटुक विपाकोदयसे छुटकारा मिल सकता है । तपस्या करना कुछ कडुवा जान पड़ता है, क्यों कि उसमें स्थूल भोगोंका त्याग करना पड़ता है इसलिये वह प्रारम्भमें आकरा जाण पड़ता है, अपितु अभ्यंतर तपमें एकाकार वृत्ति रखनी पड़ती है स्थिरता रखनी पड़ती है, जिनसे कुछ कठिनता पड़ती है परन्तु यह प्रारम्भमें ही भाती है, इसका परिणाम बहुत अच्छा है और बादमें अभ्यास पड़नेके पश्चात् अभ्यासके प्रारम्भमें मालूम होनेवाली कठिनाइया भी गायब होजाती है। . जिस इन्द्रियदमनके लिये चौदहवे अधिकारमें बहुत अच्छीतरहसे कहा गया है और जिससे महान लाभ होसकता है उन इन्द्रियदमनका परम साधन तप ही है। इसप्रकार तपस्यासे महालाभ होता है जैसे रसायण खाते समय, कई खानेके पदार्थोंका त्याग करनेसे कठिनता मालूम होती है, परन्तु शरीरमें जाने के पश्चात दुःसाध्य जान पडनेवाली व्याधियों को भी मिटा देती है। इसीप्रकार यदि सुगुरूरुप सुवैद्यद्वारा बतलाइ हुइ तपरूप रसायण शास्त्रानुसार विधि अनुसार अपथ्यका याग कर भक्ष्य की जाय तो इस संसारी जीवका कर्मरोग सुसाध्य होकर नष्ट होजाय और परिणाममें उसको अनन्त सुखकी प्राप्ति हो । __ ग्रन्थकर्ता कहते हैं कि तप कुकर्मका नाश करता है इतना ही नहीं परन्तु कुकर्मकी राशिकाभी नाश करता है । इसकी ओर विशेषतया ध्यान आकर्षित किया जाता है। सहज लाभ हो तो
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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