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________________ . संसारमें आसक्त होकर "बच्चे मेरे स्वामोवत्सल' ३ पुत्रममत्व ऐसा करते हैं अर्थात् अपने गृहमें ही सम्पूर्ण संसारका समावेस होजाना समझकर वे अन्य किसी भा प्रकारके सामाजिक विचार नहीं करते हैं। कइवार अपत्यममत्वमोचनसे सम्बन्ध रखनेवाले कर्तव्य आदिकें टेढ़े प्रश्न भी उत्पन्न होजाते हैं इन प्रश्नोंको भी इस अधिकारमें प्रत्यक्ष और परोक्षरूपसे बहुत अच्छी तरहसे हल किया गया है । यद्यपि यह अधिकार श्लोक संख्यामें अन्य सर्व अधिकारोंसे छोटा है परन्तु इससे यह कदापि न समझ बैठे की इसकी अगत्यता भी किसी कदर कम हो । चोथे धनममत्वमोचन अधिकारमें बहुत उपयोगी विषयोंका उल्लेख किया गया है । इस संसारका बहुत बड़ा भाग-लगभग सम्पूर्ण भाग - पैंसा मेरा परमेश्वर ' इस.ही वृत्ति४ धनममत्व. वाला है । पैसा पैदा करनेका मार्ग, उसका चिन्त वन, उसका विचार, उसकी बीते-आदिमें इस जीव को जितना मानन्द आता है उतना अन्य किसी भी पदार्थमें या 'पदार्थके सम्बन्धसे नहीं आता है। अनादि अभ्यास इस प्रकार मोहनीयफार्मके उदयसे पैसेको ग्यारहवां प्राण कहा जाता है, और इसकी शक्ति इतनी अधिक मानी आती है कि प्रसंग मानेपर यह अन्य दश प्राणोंका भी परित्याग करा देता है। धनका ममत्व एकदम छुड़ा देना कई पुरुषोंको असहनीय होगा सय दीक्षिवाले ग्रन्थकत्ताने यह भी बतला दिया है कि धनको व्यय किस प्रकार करना उचित है। इस विषयमें उनश्रीके कहनेका मुख्य उश्य यह जान पड़ता है कि पैसोंके विचार और झनझनाहटमें कितने ही प्राणियों आत्मिक साधन छोडदेनेका सम्भव है इसलिये इस विषयमें बहुत विचार करनेकी जरूरत है । जो नितान्त स्यूल वस्तु है, पौद्र लिक है, चल है, मरणपर्य्यन्त कदाच किसीके पास रह भी जावे जिसपर भी अन्तमें तो जो यहीपर रहनेवाली है, ऐसी वस्तुपर ममत्व कद प्राप्त हुई अनुकूलताओंका लाभ लेनेसे कदापि न चुकना चाहिये । पैसा एकत्रित करना तद्दन निर्हेतुक प्रवृत्ति है। एक अग्रेजी कविका कथन है किSake thou no thought for aught mate Right and Truth, Life holds for finer souls no. equal prine;
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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