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________________ ५९८ ] अध्यात्मकल्पद्रुम [ चतुर्दश जावेंगे । वसु राजाका पुत्र है और पर्वत मेरा नीजका पुत्र है इन दोनोंके लिये किया हुआ परिश्रम व्यर्थ होगा और प्रियपुत्र तथा उससे भी प्रिय वसु नरकमें जायगा अतएव अब इस घरमें ( संसारमें ) रहनेसे क्या सार है ? इसप्रकार वैराग्यभाव · होने पर उसने संसारका त्याग कर दिया। अब पिताके दीक्षा ले लेने पर पर्वत गुरुके स्थानपर अभ्यास कराने लगा। नारद वहां से चला गया और उसके थोड़ेसे समय पश्चात् अभिचन्द्र राजाने व्रत ग्रहण किया अतएव वसुको उसकी गादीपर बिठाया गया । वसुराजाने बहुत उत्तम प्रकारसे राज्य किया और न्याय तथा धर्मसे और अपने शुद्ध व्यवहारसे जगतमें प्रसिद्ध हुभा । संसारमें सत्यवादी प्रसिद्ध हुआ और इस पदवीको चनाये रखने के लिये वह सत्य ही वोलता रहा । . इसप्रकार बहुतसा समय व्यतीत हुआ। एक समय एक बड़ा कौतुक हुआ । एक शिकारी जंगलमें पशुपर बाण फेंक रहा था, किन्तु उसके बाण बीचमें ही रुकने लगें । शिकारी इसका कारण न समझ सका इसलिये उस स्थानपर जाकर हाथ फेरा तो स्फटिककी शिला दिख पड़ी, वह इतनी पारदर्शक थी कि बिना हाथ लगाये यह नहीं जान पड़ता था कि वह स्फटिक शिला ही थी । इस शिकारीने उस शिलाको देखकर विचार किया कि यह शिला तो महाभाग्यवान राजा वसुके ही योग्य है । वसुराजाके निकट जाकर एकान्तमें उससे सब वृतान्त कहकर उसने वह शिला भेट की । राजा बहुत प्रसन्न हुआ और शिकारीको बहुतसा पारितोषिक दिया। फिर राजाने चतुर शिल्पकारोंको बुलवाकर उनके पास बैठकर उस स्फटिक शिलाकी सुन्दर वैदिका बनवाई और तत्पश्चात् प्रच्छन्नरूपसे उन शिल्पकारोंका वध करवा डाला ! उस वैदिकापर सिंहासन रक्खी, जिस
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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