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________________ ५७८ ] . अध्यात्मकल्पद्रुम [प्रयोदश करा कर, दूसरे गुणियोंमें गुणिपनकी कमी होना बतला कर उनकी अवज्ञा और अपने उत्कर्षद्वारा अनन्त कालचक्र तक संसारमें भटकाता है। __ मुनि जीवन एकान्त परोपकारपरायण है । इसमें आलसरूप निवृत्ति नहीं है, परन्तु विशुद्ध प्रवृत्तिगर्भित निवृत्ति है और तेरे सर्व पुरुषार्थको उचित मार्ग देकर परोपकार करनेकी तेरी वृत्तिको मार्ग बतलावे ऐसा परम विशुद्ध यह मार्ग है । इस मार्गका एक क्षण भी असंख्य वर्षोंतक उत्कृष्ट सुख देता है और इसका नाम भी वन्दन नमस्कार स्तुति कराता है । .. हे यति ! इस अधिकारमें कड़वी औषधि बतलाइ गई है, परन्तु देनेवाले वैद्यके अन्तरंग माशयको समझने का प्रयत्न करना। संसारत्याग यतिजीवन है । वेश बदलना सच्चा संसारत्याग नहीं है, परन्तु काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सरादि अन्तरंग शत्रुओं का नाश करना संसारत्याग है। इस छोटीसी बातको ध्यानमें रखकर यदि तेरेसे किसी दूसरेका उपकार न हो सके तो न सही, परन्तु तू तेरे आत्माकी तो कुछ हानि न कर । परनिंदा, मत्सर, इर्षा, माया आदि सुप्रसिद्ध अठारह पापके स्थानोंका त्याग करना और तेरा क्या कर्तव्य है उसका अहर्निश विचार करना, इसीप्रकार तेरे योग्य आवश्यक पहिलेहणादिक क्रियामें सावधान रहना । यदि तेरेमें शक्ति हो तो ज्ञानसे परोपकार करना; लोगोंको उपदेश कर या लेख लिख कर इस जमानेको तथा आनेवाले नमानेको उपकृत करना। इस जमानेको तेरे जैसोंसे नि:स्पृह उपदेश सुननेकी बहुत आवश्यकता है। सांसारिक जीवन प्रवृत्तिमय हो जानेसे धार्मिक अभ्यास कम होता जाता है और ऐसे समयमें यदि तेरी मोरसे कोइ असापा रण चमत्कारी असर हो ऐसा उपदेश होगा तो अनेकों पुरुषोंको
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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