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________________ २ हो विवेचन करचुके हैं । अध्यात्मके साथ ही साथ वस्तुविचारप करनेका आग्रह किया गया है तथा अन्य सब साधनोंको निरर्थक सिद्ध किये गये हैं । • अध्यात्म शब्दका अर्थ इतना विशाल है । यह अध्यात्म स्वयं ही कल्पवृत्त है। कल्पद्रुम अथवा कल्पवृक्ष । कल्पवृक्षका कार्य उसके पास आकर याचना करनेवालेकों इच्छित कल्पद्रुम पदार्थ देनेका है । कल्पवृक्षमें पुद्गल स्कंध ही ऐसे होते हैं कि जो मनोवर्गमा के अनुसार अभिलाषाकी पूर्ती कर देते हैं। कितने ही कल्पवृक्ष देवताधिष्ठित भी होते हैं जिनके पास जाकर मिठ्ठाइ, मेवा, फल, वस्त्र, तांबूल, पलंग, अनेक प्रकारकी सामग्री आदिके लिये प्रार्थना करनेपर उन सब पदार्थोंकी शिघ्र हा प्राप्ति होजाती है। केवल जैन शास्त्रकार ही कल्पवृक्षका ऐसा वन नहीं करते हैं परन्तु अन्य शास्त्रकार भी कल्पवृक्षका स्वरूप इसीसे मिलताकुलता बतलाते हैं । कल्पवृक्ष, कामधेनु, चिन्तामणि बन्न आदि शब्द प्रसिद्ध ही है। यहां इन शब्दों का प्रयोग श्रलंकारिक भाषामें किया गया है। जिस प्रकारका कल्पवृक्षके पास जाकर किसी चिजकी याचना करनेसे उसकी प्राप्ति हो सकती है उसीप्रकार यह अध्यात्म ग्रन्थरूप कल्पवृक्ष है, इससे आत्मिक सृष्टि सम्बन्ध रखनेवाले यदि किसी पदार्थके लिये प्रार्थना की जायमी तो वह याचकको वहीं पर प्राप्त होसकेमा । आत्मिक व्यवहारके साथ उससे सम्बन्ध रखनेवाला और दूर करने योग्य सांसारिक aare और उसका दुष्ट स्वरूप भी साथ ही साथ बतलाया गया है इसलिये अध्यात्म से सम्बन्ध रखनेवाले कइ उपयोगी विषयोंका इस ग्रन्थ में मिलजाना सम्भव है । यह ग्रन्थका शब्दार्थ हुआ । ' 9 + वात पदार्थों और सवोंको देनेवाले महान वृत्तकी सोलह शाखायें होनेकी ग्रन्थकर्त्ताने कल्पना की है। सोलह शाखोंवाला वृक्ष एक छोटा वृक्ष नही हो सकता प्रषितु सोलह शास्त्रायें विशेष पत्रपुष्पादिके कारण यदि वह भव्य प्रतीत हो तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है । ग्रन्थकर्त्ताने अध्यात्मके विषयको अत्यन्त उपयोगी समझ कर उसका. अषेक प्रकारसे उल्लेख किया हैं । इस ग्रन्थकी योजना अत्यन्त नकी रक्खी गई है । सर्व जीवोंका अन्तिम साध्य मोक्ष है और
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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