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________________ अधिकार ] यतिशिक्षा [५३७ न च राजभयं न च चौरभयं, न च वृत्तिभयं न वियोगभयम् । इहलोकसुखं परलोकसुखं, , श्रमणत्वमिदं रमणीयतरम् ॥ १ ॥ अर्थात् ' साधुजीवनमें न तो राज्यका भय है, न चोरका भय है, न वृत्ति( आजीविका )का भय है, और न वियोगका भय है, इस भवमें भी सुख है और परभवमें भी सुख हैअतएव साधुपन रमणीय है।" जब ऐसी बात है तब हे आत्मा ! तू सर्वप्रकारसे लाभदायक हो ऐसे जीवन के प्राप्त करने में अथवा प्राप्त करके उसके निर्वाह करनेमें क्यों प्रमाद करता है ? x x ३०-३८ तकके नो श्लोक बहुत प्रभावदायक है और विशेषतया यति जीवनको उद्देशकर लिखे गये हैं। इसमें परीषह सहन और प्रमादत्यागका विषय मुख्य है। ये बाईस परीसह सहन करनेसे मुनिजीवन सफल हो जाता है। ये बाईस परीषह निम्न लिखित हैं। समतासे क्षुधा सहन करना । समतासे तृषा सहन करना । समतासे शीत-ठंडक सहन करना। समतासे ताप-गरमी सहन करना । समतासे डंस-मच्छरके डंसको सहना । वस्त्र प्रमाणोपेत रखना। संयममें अप्रीति न करना। स्त्रीसंसर्ग सर्वथा परित्याग करना। अप्रतिबद्ध विहार करना । अभ्यासके स्थानकी मर्यादा रखना।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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