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________________ स्मिक गुण प्राट करनेवाले अथवा प्रगट करनेकी बातें करनेवालेकों बहुत आदरसत्कार करते हैं, उसकी ओर पूज्यबुजिसे देखते हैं आर उसके सम्बन्ध में उच्च विशेषणोसे बात करते हैं । बिना मूल्य मिलनेवाली ऐसी स्थिति प्राप्त करनेकी अभिलाषा कईबार इरादोपूर्वक उत्पन्न होती है और कइवार अनजानरूपसे ऐसा आडम्बर करनेकी वृत्ति उत्पन्न होती हैं इन दोनो प्रकारके आविर्भावोंसे महान् दुःख प्राप्त होते हैं और आत्मिक अवनति होती है । वैराग्यके आडम्बर करनेकी अभिलाषा हो तब यह विचार करना चाहिये कि दीकी क्या दशा होती है ? इन दंभियोंसे अन्य प्राणियोंको भी बहुत सचेत रहना चाहिये । ऐसे 'भगत' पर प्राणी समस्त समाजकी आत्मिक उन्नतिको पीछे विवेचन. हटा देते हैं, कारण कि लोगोंको उनसे वैराग्यकी __ ओर अरुचि हो जाती है। ऐसे प्राणियोंको लोग 'भगत' का उपनाम देते हैं । अज्ञातरूपसे चाहे जो भी कारण क्यों न हो परन्तु प्रगटरूपसे उक्त शब्द जो अत्यन्त तिरस्कारका पात्र हुआ है वह केवल अध्यात्मका ढोंग करनेवालोंके ही कारणसे है। ऐसे ढोंगियों को 'शुष्क अध्यात्मी' कहते हैं । एक विद्वान महास्माके साथ अध्यात्म सम्बन्धी बात करते समय उन्होंने इसकी हसी उडाते हुए कहा था कि “ कलावध्यात्मिनो भान्त फाल्गुने बालका यथा । " " कलियुगमें अध्यात्मी पुरुष फाल्गुन महिनेके बालकोके समान प्रतीत होते हैं।' ऐसा कहनेका यह तात्पर्य है कि जैसे फाल्गुन महिनेमें छोटे छोटे बालक खैल-कूदमें बिना सोचे समझे अश्लिल शब्दोंका उच्चारण करते हैं उसी प्रकार कलियुगमें अध्यास्मी पुरुष जो कुछ कहते हैं वह बिना सोचे विचार कहा हुआ प्रतीत होता है। अन्य प्रकारसे देखा जाय तो यद्यपि ये प्रायुमें बडे अवश्य हैं परन्तु अध्यात्म विषयमें तो उनके वचनोंका विषय एक बालकके समान ही हैं। इस बातके रहस्थको ठीक ठीक समझ लेनेकी आवश्यकता है। सारांशमें सच्ची बात तो यह है कि इस युगमे जो अध्यात्मी होनेका आडम्बर करते हैं उनमें से वस्तुतः सब अध्यात्मी नहीं होते हैं। . ऐसी दशामें यह एक बड़ा विकट प्रश्न हमारे सामने आता हैं कि हम सच्चे अध्यात्मी तथा आडम्बरीको क्योंकर खोज कर
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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