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________________ अध्यात्मकल्पद्रुम [ त्रयोदश तू विचारता है कि अच्छा पक्षी हाथ लगा है, परन्तु पक्षी तो निर्दोष है, शुभ इच्छासे आया है अतएव वह तो जब मौका मिलेगा तभी चला जायगा, परन्तु जब जायगा तब तुझे बहुत कष्ट होगा और तेरी पक्षी पकड़नेकी साधनशक्ति है वह भी उसीके साथ ही साथ चली जायगी। इसप्रकार तुझे लाभके स्थानमें हानि विशेष होती है इसका विचार कर । इसके उपरान्त बाह्य दोग बनाये रखनेके लिये तुझे यहां जो जो युक्तिये रचनी पड़ती हैं वह तो एक ओर ही बात है । स्तवनका रहस्य-गुणार्जन. भवेद् गुणी मुग्धकृतैर्न हि स्तवै ने ख्यातिदानार्चनवन्दनादिभिः । विना गुणान्नो भवदुःखसंक्षय स्ततो गुणानर्जय किं स्तवादिभिः? ॥२२॥ . " भोले जीवोंसे स्तुति किये जानेपर कोई पुरुष गुणवान नहीं हो सकता है, इसीप्रकार प्रतिष्ठा पानेसे तथा दान, अर्चन और पूजन किये जानेसे कोई पुरुष गुणवान नहीं हो सकता है और बिना गुण के संसारके दुखोंका अन्त नहीं हो सकता है, अतएव हे भाई ! गुण उपार्जन कर। इस स्तुति आदिसे क्या लाभ है ? " वंशस्थ और इन्द्रवंशा ( उपजाति ) विवेचन-यह कईबार बताया गया है कि सर्व प्राणियोंकी अभिलाषा दुःखके नाश करने और सुखके प्राप्त करने की होती है। जिस सुख के अन्तमें दुःख मिले उस सुखको सुज्ञ सुख नहीं कहते हैं । भव्याबाध सुख तो मोक्ष प्राप्त होनेपर ही प्राप्त हो सकता है, अतएव मोक्ष प्राप्त करने निमित्त असाधारण गुण १ हृदयप्रदीप षटत्रिंशिका-टोक १६ वा पढ़ें।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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