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________________ अधिकार ] यतिशिक्षा कि स्तुतिकी इच्छा करनेकी पावश्यकता नहीं है, परन्तु गुण प्रगट करनेके लिये प्रयास करनेकी आवश्यकता है। - तू कौन है ? ध्यानपूर्वक विचारकर देखे तो तू एक व्यवहारिक जीव है, अनन्त जीवसमुदायों में से एक समुदायका एक जीव है, तो फिर स्तुति कैसी ? कितने समयके लिये ? कौन याद रक्खेगा ? अपितु दूसरी प्रकार देखा जावे तो तू साधु है, वीर परमात्माका जेष्ट पुत्र है, उनका शासन तेरे पर है। क्या वीर परमात्मा कभी स्तुतिकी अभिलाषा करते थे ? क्या इन्द्र के महोत्सवसे या दशार्णभद्र के सामैयासे उनके मनपर कुछ . असर हुआ था ? तेरे पूर्वज-तेरे उपकारीके बताये मार्गपर चल, योग्य बन और ऐसे उत्तम प्रसंगो जो तुझे प्राप्त हुए हैं उसका सदुपयोग कर । । तदुपरान्त भी यदि तू स्तुतिकी अभिलाषा करेगा वो उससे तुझे क्या लाभ होगा ? बिना गुण तेरी स्तुति कौन करेगा ? यदि नही करेगा तो तुझे दुःख होगा । स्तुति कराने निमित्त जो तुमे व्यर्थ प्रयास करना पड़ेगा वह भी लाभमें रहेगा। - शेष तो अत्र संताप और परत्र दुर्गतिका कारण होगा। अतएव First deserve and then desire पहले योग्य बन और फिर इच्छा कर। गुण बिना स्तुतिकी इच्छा करनेवालेका ऋण. गुणैविहीनोऽपि जनानतिस्तुति प्रतिग्रहान् यन्मुदितः प्रतीच्छति । लुलायगोऽश्वोखरादिजन्मभि..: बिना ततस्ते भवितान निष्क्रियः॥१९॥
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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